अंग्रेजी मीडियम Review: दिल को छू जाएगी इरफान और राधिका की फिल्म

 मां बाप के लिए उसके बच्चे सब कुछ होते हैं। अपने बच्चों के लिए वह किसी भी भी हद तक जा सकते हैं, भले ही वो रास्ता उनकी अपनी बर्बादी का ही क्यों ना हो। लेकिन अगर उसमें उनके बच्चों का भला हो रहा हो तो मां-बाप एक मिनट नहीं सोचते। और बच्चे बड़े होने के बाद जब आजादी के नाम पर अपनी परंपराएं अपना परिवार और उस प्यार से दूर होना चाहें तो क्या बीतेगी मां बाप पर! इसे बहुत ही हंसते-खेलते फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ में दिखाया गया है।

यह कहानी है राजस्थान में रहने वाले चंपक की (इरफान खान) चंपक राजस्थान के मशहूर हलवाई घसीटाराम के पोते हैं। और घसीटाराम के नाम का इस्तेमाल करने के लिए एक लंबा चौड़ा खानदान आपस में लड़ाई कर रहा है और मजे की बात यह है की लड़ाई सिर्फ कानूनी चल रही है मगर आपस में सभी का प्यार बरकरार है। चंपक ने अपनी बेटी तारिणी (राधिका मदान) को बचपन से अकेले ही पाल पोस कर बड़ा किया है। तारीणी का सपना है ब्रिटेन में जाकर पढ़ना और उसके लिए चंपक कई पापड़ बेलता है, और इसमें उसका साथ देता है उसका चचेरा भाई घसीटाराम बंसल (दीपक डोबरियाल)। क्या चंपक अपनी बेटी को लंदन ले जा पाएगा? क्या तारीणी का सपना पूरा होगा ? इसी ताने-बाने से बुनी गई है फिल्म अंग्रेजी मीडियम।

निर्देशक होमी अदाजानिया ने बाप बेटी के रिश्ते को बड़ी ही खूबसूरती के साथ पर्दे पर उतारा है वहीं दूसरी तरफ आपस में कानूनी लड़ाई लड़ रहे दीपक डोबरियाल और इरफान खान की केमिस्ट्री को भी बेहतरीन ढंग से पेश किया है। इरफान खान, दीपक डोबरियाल और किकू शारदा की बचपन की दोस्ती रिश्तों की एक अलग मिसाल पेश करती है। जिस तरह से होमी ने अंग्रेजी मीडियम को रिश्तों के मेटाफर से जोड़ा है वह सराहनीय है।

इरफान खान चंपक जैन के किरदार में पूरी तरह से छा जाते हैं। उनको पर्दे पर देखना सुखद है। दीपक डोबरियाल उनका साथ पूरी तरह से देते हैं। राधिका मदान अपनी अभिनय क्षमता अपनी पहली ही फिल्मों में साबित कर चुकी है यह किरदार एक बार फिर से उनकी अभिनय क्षमता को बयान करता है। किकू शारदा गिने-चुने कॉमेडियंस में से हैं जो उम्दा अभिनय भी करते हैं। उनके बाकी साथी कॉमेडियन अपन कमजोर अभिनय का परिचय अलग-अलग फिल्मों में दे चुके हैं।

एक लंबे समय के बाद डिंपल कपाड़िया को बड़े पर्दे पर देखना एक सुखद अनुभव रहा उनका सहज अभिनय उनकी खासियत है। करीना कपूर का हिस्सा कुछ ज्यादा था नहीं, मगर जिसके लिए उन्हें रखा था उसकी जवाबदारी उन्होंने पूरी तरह से निभाई। कुल मिलाकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा की ‘अंग्रेजी मीडियम’ ‘हिंदी मीडियम’ जितनी सशक्त तो नहीं मगर बाप बेटी-भाई, भाई-भाई और दोस्तों की भावनाओं की यात्रा है जो आपके दिल को छू लेती है। अपनी बीमारी से लड़ते लंबे समय के बाद पर्दे पर आने वाले इररफन खान के लिए ये फ़िल्म देखना तो बनता ही है।

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