यमराज के बारे में अभी ने सुना होगा क्योंकि हमारे धर्म शास्त्रों में कहा जाता कि कोई भी इंसान अपनी मृत्यु के बाद यमलोक में जाता है. कहा जाता है कि मृत्यु के पश्चात यमराज स्वयं उसे यमलोक में ले जाते है और वहां पर यमराज उसकी आत्मा से उसके जीवन में किए गए पाप और पुण्य का हिसाब किया जाता है. हमारे धर्म शास्त्रों में यमराज और यम लोक से सम्बन्धित कई रहस्य है.
पुराणों के अनुसार यमराज को धर्मराज कहा जाता है क्योंकि यमराज ही मनुष्य के धर्म और कर्म के अनुसार उसे अलग-अलग लोकों और योनियों में भेजने का कार्य करते हैं. इनके बारे में ऐसा भी माना जाता है कि यमराज धर्मात्मा व्यक्ति को इनका स्वरुप कुछ-कुछ विष्णु भगवान की तरह प्रतीत होता है और पापियों यमराज के उग्र रुप के दर्शन होते है. कोई भी मनुष्य अपनी मृत्यु के बाद में सबसे पहले यमराज और वरुण देव को को देखता है.
पद्म पुराण के अनुसार पृथ्वी की यमलोक से दूरी 86,000 योजन यानी करीब 12 लाख किलोमीटर है.
कहा जाता है कि यमलोक में एक नदी है जिसका नाम पुष्पोदका है. इस नदी का जल अत्यंत शीतल और सुगंधित है. इस नदी में विशाल जांघों वाली अप्सराएं क्रीड़ा करती रहती हैं.
पुराणों के अनुसार यमराज की नगरी अर्थात यमलोक करीब 48 हजार किलोमीटर लम्बा और 24 हजार किलोमीटर चौड़ा है.
ऋग्वेद के अनुसार कबूतर और उल्लू यमराज के दूत माने गए है जबकि गरुड़ पुराण में कौए को भी यम का दूत कहा गया है.
शास्त्र के आधार पर कहा जाता है की यमलोक के द्वार पर दो विशाल कुत्ते हर समय पहरा देते हैं. इन विशाल कुत्तो का उल्लेख हिन्दू धर्मग्रंथों में तो मिलता ही किन्तु इनके उल्लेख पारसी और यूनानी धर्म ग्रंथों में भी मिलता है.
गरुड़ पुराण में उल्लेख मिलता है कि यमलोक में बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं और राजमार्ग हैं. यमलोक में चित्रगुप्त का एक विशाल महल है जो यमराज के सहायक के रूप में कलारी करते है.
यमलोक में यमराज का एक विशाल राजमहल है जिसका नाम “कालीत्री” है. यमराज राजमहल में जिस सिंहासन पर बैठते हैं उसका नाम “विचार-भू” है. हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार यमलोक में चार द्वार हैं जिनमें पूर्वी द्वारा से सिर्फ धर्मात्मा और पुण्यात्माओं को प्रवेश मिलता है जबकि दक्षिण द्वार से पापियों का प्रवेश होता है और ये पापी यमलोक में यातनाएं भुगतते है