जानिए कैसे: विदेशों में बैठे लोग बिना उज्जैन आए करवा रहे तर्पण...

जानिए कैसे: विदेशों में बैठे लोग बिना उज्जैन आए करवा रहे तर्पण…

राजेश वर्मा, उज्जैन। श्राद्ध पक्ष 6 सितंबर से आरंभ हो रहा है। उज्जैन में तर्पण के महत्व को देखते हुए भारत के विभिन्न शहरों के अलावा अमेरिका, कनाडा, फ्रांस और ब्रिटेन सहित दुनिया के कई मुल्कों के कई श्रद्धालुओं ने फोन पर बुकिंग कराई है।जानिए कैसे: विदेशों में बैठे लोग बिना उज्जैन आए करवा रहे तर्पण...मोदी कैबिनेट में फेरबदल: अमित शाह ने की लिस्ट फाइनल, कल 10 बजे होगी शपथ ग्रहण शपथ

सात समंदर पार बैठे श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान यहां पंडितों की सहायता से कर सकेंगे। पिछले कुछ सालों से प्रचलन में आए श्राद्ध के इस तरीके का पंडितों का एक वर्ग विरोध कर रहा है, जबकि दूसरा पक्ष मानता है कि विशेष परिस्थिति में आचार्य परंपरा से अपने पुरोहित के माध्यम से तर्पण कराया जा सकता है।

सनातन धर्म परंपरा में गया के बाद उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व है। उज्जैन में रामघाट पर पिशाचमोचन तीर्थ, गयाकोठा और सिद्धवट पर तर्पण का विधान है। देश-दुनिया से लोग यहां श्राद्ध पक्ष में आते हैं। कुछ वर्षों से विदेश में बैठकर पंडितों के माध्यम से तर्पण और पिंडदान कराने का चलन बढ़ा है।

श्रद्धालु स्वयं यहां न आकर फोन पर ही तर्पण की बुकिंग करा लेते हैं। इस साल करीब 12 से 15 लोगों ने इस बार विदेशों से बुकिंग करवाई है। प्रक्रिया के तहत बुकिंग के साथ ही यजमान से संकल्प करवा लिया गया है। उनके पितरों के नाम आदि नोट कर लिए गए हैं। मृत्यु के दिन के हिसाब से पंडित तिथि निकाल लेंगे। उस दिन यजमान से बात करने की जरूरत नहीं होगी। पंडित उनके द्वारा मुहैया करवाए नामों का तर्पण और पिंडदान कर देंगे।

आचार्य परंपरा से तर्पण शास्त्र सम्मत

पं. अमर डब्बावाला का कहना है कि व्यक्ति को स्वयं तीर्थ पर आकर देवताओं की साक्षी में अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करना चाहिए। इससे पितरों की तृप्ति व पदवृद्धि होती है। दूसरी ओर एस्ट्रो पंडित सतीश जोशी का मानना है कि विदेशों में बैठे लोग स्वयं पिंडदान और तर्पण करने नहीं आ सकते, लेकिन उनकी सनातन धर्म परंपरा में रुचि लगातार बढ़ती जा रही है। इस बार भी एक दर्जन से अधिक लोगों ने उनके पास बुकिंग कराई है। इसलिए आचार्य परंपरा से तर्पण करना शास्त्र सम्मत है। इसमें कोई बुराई नहीं है।

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