होली के रंगों को खास मनाने के लिए होलिका दहन का अपना महत्व होता है. फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाता है. पूर्णिमा के दिन चौराहों पर होलिका दहन किया जाता है. इस दिन बड़ी संख्याओं में महिलाएं होली की पूजा करती हैं. होलिका पूजा और दहन में परिक्रमा बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है.
फाल्गुन माह की पूर्णिमा के रात को भद्रा रहित प्रदोष काल में होली दहन को श्रेष्ठ माना गया है. मान्यता है कि इस पूजा से घर में सुख और शांति आती है. कहा जाता है कि परिक्रमा करते हुए अगर अपनी इच्छा कह दी जाए तो वो सच हो जाती है. होली की बची हुई अग्नि और भस्म ठंडी हो जाने पार लोग इसे अपने घर पर ले जाते हैं, कहते हैं ऐसा करने से घर की सभी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है.
ऐसे करें होलिका दहन
सबसे पहले होलिका दहन के स्थान को पहले गंगाजल से शुद्ध करें. फिर गुलर के पेड़ की टहनी होलिका डंडा बीच में रखें. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इसे भक्त प्रहलाद का प्रतीक एक डंडा होता है. इसके बाद सामान्य लकड़ियां, उपले और घास चढ़ाएं और कपूर के साथ अग्नि प्रज्वलित करें. अग्नि में रोली, पुष्प, चावल, आदि चीजें चढ़ाएं और फिर ॐ प्रह्लादये नमः बोलकर होलिका की परिक्रमा करें. आखिर में गुलाल डालकर लोटे से जल चढ़ाएं.
ये है होलिका दहन की कहानी
हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे. लेकिन हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु का घोर विरोधी था. हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने की कई बार कोशिश की. कहा जाता है उसने प्रहलाद को मारने के लिये बहन होलिका का सहारा लिया था. होलिका को आग में ना जलने का वरदान मिला था, इस कारण होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई थी. लेकिन श्री विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की और होलिका आग्नि में भस्म हो गई. तभी से होलिका दहन की प्रथा शुरू हो गई.
होलिका दहन का मुहूर्त
20 मार्च को पूजा करने का मुहूर्त- प्रातः 10:45 से रात्रि 08:59 तक
रात 09 बजे के बाद होलिका दहन का शुभ मुहूर्त