केंद्र सरकार और किसान यूनियनों में जारी गतिरोध के बीच किसानों ने शनिवार को टोल प्लाजा फ्री करने और राजमार्ग जाम करने का एलान किया है। 9 दिसंबर के सरकार के प्रस्तावों को ठुकराने के बाद किसानों ने अपना आंदोलन तेज करने की घोषणा की है। बीकेयू के प्रमुख बलबीर एस राजेवाल ने कहा कि रिलायंस और अडानी के टोल प्लाजा को फ्री करेंगे। 14 दिसंबर को डीसी ऑफिस और भाजपा नेताओं के घरों का घेराव करेंगे। वहीं भारतीय किसान यूनियन ने कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि ये मनमाना, असांविधानिक और किसान विरोधी हैं। उधर, कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि किसानों ने सरकार के प्रस्ताव का अब तक जवाब नहीं दिया है।
आंदोलन को धार देने के लिए आक्रामक स्वभाव और पारंपरिक हथियारों से पहचाने जाने वाले निहंग सिखों ने भी किसानों को समर्थन देने का फैसला किया है। देश के कोने-कोने से निहंगों के जत्थे दिल्ली पहुंच रहे हैं। बृहस्पतिवार और शुक्रवार को भी सिंघु बॉर्डर पर कई जत्थों ने दस्तक दी। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ से भी किसानों का जत्था पहुंचा है। वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी किसान आंदोलन के समर्थन में उतर आई है। दोनों दलों ने कहा है कि वे 14 दिसंबर को पंजाब में अलग-अलग प्रदर्शन करेंगी। बीकेयू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान कानूनों में संशोधन नहीं चाहते, यदि सरकार इसके बातचीत के लिए निमंत्रण भेजती है, तो किसान आपस में चर्चा कर इस पर विचार करेंगे। सरकार अगर हमसे बात करना चाहती है तो उसे पहले की तरह औपचारिक न्योता भेजना चाहिए।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साझा मंच ने किसान आंदोलन को समर्थन देने की बात दोहराते हुए शुक्रवार को कहा कि किसानों का 8 दिसंबर का भारत बंद सफल रहा था। उन्होंने कहा कि भारत बंद की अपील के बावजूद ट्रेड यूनियनें हड़ताल पर नहीं गईं, लेकिन हमने किसानों के आंदोलन को अपना नैतिक समर्थन दिया। किसानों को अपना समर्थन देने वाली दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों में इंटक, एटक, हिंद मजदूर सभा, सीटू आदि शामिल हैं।
जारी किसान आंदोलन के बीच कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार ने किसान यूनियनों को जो प्रस्ताव भेजा था, उसका अब तक कोई जवाब नहीं आया है। हमें मीडिया के माध्यम से सूचना मिल रही है कि किसान संगठनों ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया है, लेकिन हमें इसकी कोई सूचना नहीं दी गई। यदि किसानों को किसी प्रावधान पर कोई आशंका है तो हम अब भी बातचीत के लिए तैयार हैं। ये कानून किसानों की बेहतरी के लिए हैं.
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने शुक्रवार को फिर से कहा है कि जब तक तीनों कानून रद्द नहीं होते, तब तक आंदोलन वापस नहीं लिया जाएगा। बीकेयू के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार और किसानों के बीच गतिरोध समाप्त होने का केवल एक ही रास्ता है। केंद्र को कानून रद्द करना होगा उसके बाद किसान अपने घर चले जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि किसान कानूनों में संशोधन नहीं चाहते, जैसा कि सरकार की ओर से सुझाव दिया गया था। बातचीत की संभावना पर टिकैत ने कहा कि यदि सरकार इसके लिए निमंत्रण भेजती है, तो किसान आगे की बातचीत की संभावना पर विचार करेंगे.
दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों ने अपने आंदोलन को सड़कों पर रखने और कृषि कानूनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की गुहार लगाई है। भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) ने अपने अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह के जरिये सुप्रीम कोर्ट में दखल याचिका दायर की है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 12 अक्तूूबर को कृषि कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर परीक्षण करने का निर्णय लेते हुए केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा था। अब भानु गुट ने अपनी याचिका में कहा है कि तीनों कृषि कानून मनमाना, गैरकानूनी, असांविधानिक और किसान विरोधी हैं। यह कानून कॉरपोरेट व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में हैं। अगर इन्हें मौजूदा प्रावधानों के साथ प्रभाव में लाया गया, तो यह कृषक समुदाय के लिए घातक साबित होगा।