भारत राजमार्गों पर सुरक्षा बढ़ाने और निर्माण लागत कम करने के लिए स्टील क्रैश बैरियर को बांस से बदलने पर विचार कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस लेटेस्ट टेक्नोलॉजी को भारत में पेटेंट कराया गया है और यह यूरोपीय सुरक्षा मानकों को पूरा करती है। इससे हरित अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिलने और राजमार्ग निर्माण की लागत में 20 प्रतिशत तक की कमी आने की उम्मीद है। इससे पहले हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भी इस योजना के बारे बताया था कि केंद्र सरकार मवेशियों को सड़क पार करने और खतरनाक दुर्घटनाओं का कारण बनने से रोकने के लिए भारत में राजमार्गों पर बाहु बल्ली केटल फेंस (बाहु बल्ली मवेशी बाड़) लगाने की योजना पर काम कर रही है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का लक्ष्य अगले छह से आठ महीनों के भीतर 25 राज्यों में कुल 86 किलोमीटर राजमार्गों को कवर करते हुए ट्रायल प्रोजेक्ट शुरू करना है। इस चरण के बाद, मंत्रालय बांस क्रैश बैरियर के इस्तेमाल को बढ़ाने की व्यवहार्यता और संभावित लाभों का मूल्यांकन करेगा, जो बांस उत्पादकों के लिए एक महत्वपूर्ण लाभ हो सकता है। जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ती है, यह अनुमान लगाया जाता है कि क्रैश बैरियर के निर्माण की लागत 10-20 प्रतिशत तक कम हो सकती है।
स्टील बैरियर में इस्तेमाल की गई धातु की मोटाई, वजन और गुणवत्ता के आधार पर उनकी मौजूदा कीमत 1,200 रुपये से 2,500 रुपये प्रति मीटर तक होती है। इसकी तुलना में, बांस एक लागत प्रभावी ऑप्शन के रूप में आता है। खासतौर पर कमी और खनन चुनौतियों के कारण स्टील की बढ़ती कीमतों को देखते हुए। मंत्रालय ने पायलट प्रोग्राम संचालित किए हैं और अब इसे अपनी ग्रीन हाईवे पहल के एक घटक के रूप में शामिल करने के लिए उत्सुक है।
बांस के अनूठे खोखले सर्कुलर स्ट्रक्चर और इसके मजबूत इंटरनोड्स के साथ, इसमें ताकत और लचीलापन दोनों होता है। जिससे यह वाहन के टक्कर के बाद जल्दी ही अपने ओरिजिनल आकार को फिर से हासिल कर सकता है। अधिकारी ने कहा, इससे न सिर्फ वाहन में बैठे लोगों की सुरक्षा बढ़ती है बल्कि वाहन को होने वाले नुकसान को भी कम किया जा सकता है।
बांस की स्थायित्व और लाइफ को एक विशेष उपचार प्रक्रिया के जरिए बढ़ाया जा सकता है। जिससे मौसम की बदलती स्थितियों में भी इसका लचीलापन बरकरार रह सकता है। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांस उत्पादक देश है। देश में 130 लाख हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर सिर्फ बांस की खेती होती है। जिसका वार्षिक उत्पादन 50 लाख टन से ज्यादा है।
बांस एक तेजी से बढ़ने वाला और लचीला पौधा है जिसे न्यूनतम पानी और रखरखाव की जरूरत होती है। इस खासियत की वजह से यह पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ होता है। इसके अलावा, बांस को एक अतिरिक्त फसल के रूप में बढ़ावा देने से ग्रामीण और कृषि आय में बढ़ोतरी हो सकती है।
इस मॉडल की सफलता भारतीय रेलवे को रेल पटरियों के किनारे बाड़ लगाने के लिए बांस का इस्तेमाल करने पर विचार करने के लिए भी प्रेरित कर सकती है।
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