इलाहाबाद हाईकोर्ट से योगी सरकार को बड़ा झटका लगा है. अदालत ने लखनऊ में सीएए विरोध प्रदर्शन में संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों की सड़क किनारे लगी फोटोग्राफ तत्काल हटाने का आदेश दिया है और 16 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट के साथ हलफ़नामा दाखिल करने के लिए कहा है. चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की पीठ ने लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट और आयुक्त को निर्देश दिया.

पोस्टर लगाए जाने को लेकर चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर की अदालत ने स्वत: संज्ञान लिया था और पूछा था कि क्या वह सार्वजनिक स्थान और नागरिक आजादी पर अतिक्रमण नहीं कर रही है. कल इसी को लेकर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई और अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया.
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दलील दी कि अदालत को इस तरह के मामले में जनहित याचिका की तरह हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अदालत को ऐसे कृत्य का स्वतः संज्ञान नहीं लेना चाहिए जो ऐसे लोगों द्वारा किए गए हैं जिन्होंने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है.
पिछले साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर हिंसा करने वालों के नाम उजागर करते हुए जिला प्रशासन ने उनके नाम-पते वाले होर्डिग्स लखनऊ में कई जगहों पर लगाए हैं.
पुलिस ने करीब 50 लोगों की पहचान कथित उपद्रवियों के तौर पर की है और उन्हें नोटिस जारी किया. पोस्टर में जिन लोगों की तस्वीरें हैं उसमें कांग्रेस नेता सदफ जाफर और पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी भी शामिल हैं. उन होर्डिंग्स में आरोपियों के नाम, फोटो और आवासीय पतों का उल्लेख है. इसके परिणाम स्वरूप नामजद लोग अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं.
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