हम भरोसा दिलाते हैं कि PM मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार किसानों के हित में जो सबसे उचित होगा वही कदम उठाएगी : कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का मानना है कि किसानों की समस्याएं और आशंकाएं सिर्फ बातचीत से ही दूर हो सकती हैं। केंद्र की ओर से भेजे गए प्रस्तावों पर किसानों को बैठकर बात करनी चाहिए और आंदोलन खत्म कर देना चाहिए। केंद्र सरकार हर मुद्दे पर बातचीत करने और समाधान निकालने की हर कोशिश कर रही है।

हमारे द्वारा किए कानून संशोधनों को लेकर कुछ किसान संगठनों ने जो भी बातें सरकार के सामने रखी हैं, सरकार उस पर खुले मन से लगातार बातचीत कर रही है। किसान संगठनों के साथ 14 अक्तूबर को सचिव स्तर पर चर्चा हुई। 13 नवंबर को मैंने खुद किसान संगठनों के साथ बैठक की। इसके बाद हम लगातार चर्चा कर रहे थे, इसी बीच 26-27 नवंबर के आंदोलन की घोषणा हो गई। इसके बाद तीन दिसंबर की तारीख किसान संगठनों के साथ बैठक के लिए तय की गई, लेकिन हालात को देखते हुए एक दिसंबर को ही किसानों के साथ चर्चा की, उसके बाद तीन और पांच दिसंबर को भी लंबी बैठक किसान संगठनों के साथ हुई। आठ दिसंबर को गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी चर्चा हुई।

हमने किसानों की शंकाओं के आधार पर मुद्दे चिन्हित किए और उसी आधार पर प्रस्ताव हमने किसान संगठनों को भेजा है। इस पर चर्चा के माध्यम से ही हल निकल सकता है। जब बिंदु बताए जा रहे थे तब उन्होंने पराली और बिजली संबंधी मुद्दे भी जोड़ने को कहा जिन्हें हमने स्वीकार किया है।’

ठंड और कोरोना की प्रतिकूल परिस्थितियों को देखते हुए मैं किसान संगठनों से यही अपील करता हूं कि वे तत्काल आंदोलन समाप्त करें। चर्चा जारी है, हम भरोसा दिलाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार किसानों के हित में जो सबसे उचित होगा वही कदम उठाएगी। संगठनों को किसानों के साथ ही आम लोगों की भी चिंता करनी चाहिए।’

देखिए, कानून में कौन-कौन से प्रावधान हैं जिन पर किसानों को आपत्तियां हैं, उन पर हम खुले मन से चर्चा के लिए तैयार हैं। हमने किसान संगठनों को संशोधन का प्रस्ताव भी भेजा है, उसमें वही बिंदु हैं जिन्हें लेकर किसान संगठनों ने आपत्ति जताई थी। कानून वापस लेना समस्या का समाधान नहीं है और कानून किसानों की बेहतरी के लिए ही लाया गया है, ये बात उन्हें समझनी चाहिए।’

देखिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ये स्वयं आश्वासन दे चुके हैं कि एमएसपी जारी थी, जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगी। मैंने भी कई बार इस बात को कहा है। संसद में भी यही वक्तव्य दिया गया है कि एमएसपी की प्रक्रिया यथावत रहेगी। एमएसपी यथावत रहेगी, हम इस मामले में लिखित आश्वासन देने को तैयार हैं। ये आशंका बिल्कुल निराधार है कि मंडियां ख़त्म हो जाएंगी । नए प्रावधानों से मंडियों को भी अपने संसाधन बढ़ाने के अवसर प्राप्त होंगे। सरकार किसानों की शंका का पूरी तरह से समाधान करने और उनके हित के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।

एमएसपी हमेशा से प्रशासनिक फैसला रहा है। सरकार यह लिखित में आश्वासन देने के लिए तैयार है कि एमएसपी पर खरीद यथावत रहेगी। वहीं कृषि उपज विपणन समितियां (एपीएमसी) भी पहले की तरह कार्य करती रहेंगी। एपीएमसी और निजी मंडी में कर की समानता हो इस पर भी सरकार विचार करने के लिए तैयार है। एपीएमसी को किस तरह सशक्त किया जाए इस पर भी सरकार ध्यान दे रही है। सरकार ने इस संबध में किसानों को प्रस्ताव दिया है। हमें भरोसा है कि सार्थक परिणाम निकलेंगें।

जहां तक संसद में चर्चा का विषय है तो संसद के पिछले सत्र में सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार से जुड़े तीन संशोधन लेकर आई थी। लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में चार-चार घंटे तक इन विषयों पर चर्चा हुई है। राज्यसभा में चर्चा के बाद जब मेरा जवाब देने का समय आया तो प्रतिपक्ष के कुछ सदस्यों ने एक अभद्र घटना को अंजाम दिया, जो देश के लोकतांत्रिक इतिहास में काले धब्बे के रूप में अंकित रहेगी। लेकिन दोनों कानून विधिवत पारित हुए और महामहिम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद देशभर में लागू हुए हैं।’

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