लखनऊ. सोशल मीडिया पर इन दिनों डॉ एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश के कुलपति प्रो विनय कुमार पाठक एवं शासन के पक्ष और विपक्ष में एक अजब सा युद्ध छिड़ा हुआ है. इसकी पड़ताल की गई तो एक नई कहानी आई. वह यह कि राज्य के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में हाल ही में संपन्न हुई शिक्षकों की भर्तियों में जिनका चयन नहीं हो पाया, वे पहले तो अदालत गए. अदालत ने सारे तथ्यों को देखा. कोई गड़बड़ी नहीं मिलने पर किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया.
सारे विवाद की जड़ में राजकीय इंजीनियरिंग कालेजों में लगभग ढाई सौ पदों पर हुई भर्ती है. तय नियमों के तहत ज्यादातर आईआईटी, एनआईआईटी से पास होने वाले शिक्षकों की भर्ती हुई. इस भर्ती के लिए बने बोर्ड में भी नियमों का पालन किया गया. समय से परिणाम आये और शिक्षकों ने अपनी नियुक्ति के हिसाब से ज्वाइन भी कर लिया. परिणाम आने के बाद स्वाभाविक है कि ज्यादातर लोगों को निराशा हाथ लगी.
उन्हीं में से कुछ लोग अदालत से राहत न मिलने के बाद आरोप लगा रहे हैं. आरोप है कि कुलपति प्रो विनय कुमार पाठक एक ही कम्युनिटी के 60 फीसद से ज्यादा लोगों की भर्तियाँ कर डालीं. आरोप लगाने वाले लोग सोशल मीडिया पर यह भी लिखने से नहीं चूक रहे हैं कि प्रो पाठक ने अदालत से लेकर शासन तक में बहुत अच्छे तरीके से इस पूरे मामले को मैनेज कर लिया है. ऐसा लिखने वाले यह भी भूल रहे हैं कि वे अदालत की अवमानना कर रहे हैं.
इस सम्बन्ध में प्रो पाठक ने पूछने पर बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा तय मानकों पर एक पारदर्शी व्यवस्था के तहत भर्ती की गई है. कहीं किसी भी तरह की गड़बड़ी किसी भी स्तर पर नहीं हुई है. अगर कोई गड़बड़ी होती तो अदालत हमें कठघरे में खड़ा कर देती. शासन भी ऐसा ही करता. चूंकि सब कुछ शासन की देखरेख में नियमों के तहत हुआ है इसलिए उन लोगों का परेशान होना स्वाभाविक है, जिनका चयन हो नहीं पाया है. उन्होंने जानकारी दी कि कुल 248 भर्ती हुई हैं. इनमें 151 (60.88 फीसद) ऐसे हैं जिन्होंने आईआईटी या एनआईटी से मास्टर्स किया हुआ है. 248 में 114 (46 फीसद) तो बाकायदा पीएचडी होल्डर्स हैं और नौ (3.63 फीसद) पीएचडी कर रहे हैं. ऐसे में किसी भी आरोप में दम नहीं है. सोशल मीडिया पर चल रहे कैम्पेन पर श्री पाठक ने कुछ भी कहने से इनकार किया.
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