देश की राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना और प्रदर्शन पर रोक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपना अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के जंतर मंतर और बोट क्लब पर आंदोलन और धरना-प्रदर्शन के एनजीटी के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें इन दोनों स्थान पर किसी तरह के आंदोलन और धरना प्रदर्शन करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
एनजीटी ने दिल्ली के ऐतिहासिक जंतर-मंतर और बोट क्लब में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण और अतिक्रमण को मुद्दे पर आंदोलन और धरना प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने इस स्थानों की जगह रामलीला मैदान में धरना प्रर्शन और आंदोलन करने का निर्देश दिया था। मामले में याचिका मजदूर किसान शक्ति संगठन और अन्य लोगों की ओर से दाखिल की गई थी, जिसमें कहा गया था कि लोगों से शांतिपूर्वक प्रदर्शन का हक नहीं छीना जा सकता है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर रोक से लोगों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
क्या था मामला
एनजीटी ने वर्ष 2017 में जंतर मंतर क्षेत्र में सभी तरह के प्रदर्शन और धरनों पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों द्वारा इस क्षेत्र का लगातार इस्तेमाल वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 1981 समेत पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन है। एनजीटी ने यह फैसाल वरुण सेठ और अन्यों की ओर से दाखिल एक याचिका पर सुनाया था। याचिका में आरोप लगाया गया था कि जंतर-मंतर पर सामाजिक समूहों, राजनीतिक पार्टियों, एनजीओ द्वारा किये जाने वाले आंदोलन और जुलूस क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत हैं।
एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आरएस राठौर ने दिल्ली सरकार के साथ नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (NDMC) कहा था कि वह अस्थायी ढांचे, लाउड स्पीकर और जनता को संबोधित करने वाले सिस्टम को तत्काल हटाए।
इसी के साथ एनजीटी ने दिल्ली सरकार, एनडीएमसी और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को कहा था कि वे तत्काल जंतर मंतर पर सभी तरह के विरोध प्रदर्शनों पर मसलन धरना, आंदोलन, लोगों के इकट्ठा होने, जनसभा को संबोधित करने, लाउड स्पीकर इस्तेमाल करने का विकल्प ढूूंढ़ें। इन्हें रामलीला मैदान के पास ले जाएं।
यह याचिका वरुण सेठ ने दायर की थी, याचिका में कहा गया था कि सामाजिक समूहों, राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संस्थाओं से जुड़े लोग जंतर मंतर पर प्रदर्शन करते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है। याचिका में यह भी कहा गया था कि नियमित प्रदर्शन करने वाले शांत से रहने के अधिकारों को उल्लंघन करते हैं।
उस दौरान न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली एनजीटी की पीठ ने कहा था कि कई अदालतों ने समय समय पर विरोध प्रदर्शनों के आयोजन स्थल के तौर पर किसी अन्य स्थान का चयन करने का आदेश दिया है लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।