पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के सुंदरबन इलाके में नरभक्षी बाघों ने आतंक मचा रखा है। ये आदमखोर बाघ महिलाओं का सिंदूर उजाड़ रहे हैं। इन बाघों ने अब तक 3000 महिलाओं को विधवा बना दिया है। आइये जानते हैं, यहां के बाघ क्यों हो गए हैं नरभक्षी? क्यों वे पुरुषों को निशाना बना रहे हैं?
देश में कभी-कभार बाघ, शेर या अन्य वन्य जीवों के नरभक्षी होने की खबर मिलती है, लेकिन सुंदरबन व उसके आसपास के इलाके के बाघ लगातार महिलाओं की गृहस्थी बर्बाद कर रहे हैं। इलाके के ग्रामीण मछली पकड़कर या शहद एकत्रित कर के गुजर-बसर करते हैं। यह इलाका बांग्लादेश व भारत का सीमावर्ती द्वीपीय क्षेत्र है और यहां घने जंगल भी हैं।
क्षेत्र के ग्रामीण लोग मछली पकड़ने और शहद की तलाश में अक्सर घने जंगलों में चले जाते हैं। यही गलती उन्हें बाघ का निवाला बना देती है। कोरोना लॉकडाउन के बाद इलाके में बड़े लोग शहरों की मजदूरी छोड़कर वापस आ गए हैं, इसलिए ये लोग भी समुद्री व जंगली क्षेत्र में मछली व शहद के लिए बड़ी संख्या में जाने लगे हैं। दरअसल जंगल हैं तो वन्य जीवों के, जहां के वे राजा होते हैं, इसमें जब इंसानी दखल या घुसपैठ हो तो उनका हिंसक होना स्वाभाविक माना जा सकता है।
क्षेत्र के कई गांव तो ऐसे हैं जहां हर दूसरे घर में एक विधवा हो गई है। उसके पति का बाघ ने शिकार कर लिया है। मीडिया की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। दक्षिणबंगा मत्स्य बीज फोरम के प्रमुख प्रदीप चटर्जी का कहना है कि एक अनुमान के अनुसार क्षेत्र में नरभक्षी बाघों के कारण अब तक 3000 महिलाएं विधवा बन चुकी हैं। बीते 10 माहों में 60 लोग बाघों के हमले में मारे जा चुके हैं।
बकौल प्रदीप चटर्जी जंगलों से आजीविका चलाने वाले लोगों को दिनभर में करीब 700 रुपये की कमाई हो पाती है, लेकिन इसके बदले में उनकी जान की जोखिम रहती है। ये लोग कई बार प्रतिबंधित व समुद्री क्षेत्रों में भी घुस जाते हैं और मौत के मुंह में समा जाते हैं।
सुंदरबन टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर तापस दास का कहना है कि सरकार प्रतिबंधित क्षेत्रों में होने वाली मौतों पर मुआवजा नहीं देती है। उन्हीं मामलों में मुआवजा दिया जाता है, जिनमें संबंधित की मौत गैर प्रतिबंधित जंगली क्षेत्र में हुई हो।