अमेरिकन डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के तेजी से हो रहे अवमूल्यन से समूचे देश में चिंता का माहौल है तथा रुपये का अवमूल्यन रोकने की दिशा में भारत सरकार की सारी कोशिशें टांय-टांय-फिस्स होती नजर आ रही हैं। रुपये के सिंबल में वास्तु दोष के चलते रुपये का लगातार अवमूल्यन हो रहा है तथा सिंबल को वास्तु सम्मत बनाये बिना रुपये की सेहत में सुधार की उम्मीद नहीं।
अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वास्तु विशेषज्ञ राजकुमार झांझरी ने आज गुवाहाटी प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में इस आशय के विचार व्यक्त किये। मालूम हो कि पूर्वोत्तर में वास्तु के जरिये लोगों का जीवन सुधारने में लगे श्री झांझरी ने अब तक 16,000 परिवारों को नि:शुल्क वास्तु सलाह दी है।
गुवाहाटी प्रेस क्लब में पत्रकारों को संबोधित करते हुए श्री झांझरी ने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह जब भारत के प्रधानमंत्री थे, तब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह कहकर उन पर कटाक्ष किया करते थे कि गिरता रुपया जल्द ही उनकी उम्र को पार कर जायेगा।
लेकिन अब चूंकि नरेन्द्र मोदी खुद भारत के प्रधानमंत्री हैं और रुपया उनकी उम्र 68 साल को पार कर 74 तक पहुंच चुका है, तब उनकी सरकार रुपये का अवमूल्यन रोकने में पूरी तरह व्यर्थ साबित हो चुकी है।
दरअसल भारत के राजनीतिक नेता रुपये के साथ गिर रही भारत की साख को बचाने के बजाय एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने के गंदे खेल में ही व्यस्त हैं, जो वाकई चिंता का विषय है।
सोचने की बात है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1966 के भारी सूखे, 1975 की आपातस्थिति, 1997 के एशियाई वित्तीय संकट, 2007-08 की वैश्विक वित्तीय मंदी आदि सरीखी गंभीर परिस्थितियों के बावजूद रुपये का इतना अवमूल्यन नहीं हुआ था, जितना आज सामान्य हालातों में हो रहा है।
श्री झांझरी ने कहा कि भारत सरकार द्वारा 2010 में रुपये का नया प्रतीक जारी करने के बाद से ही रुपये का तेजी से अवमूल्यन हो रहा है। हमने सन् 2012 में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व उनकी सरकार के वित्तमंत्री श्री प्रणब मुखर्जी तथा श्री नरेन्द्र मोदी को भी प्रधानमंत्री बनने के बाद पत्र लिखकर इस बात की चेतावनी दी थी कि रुपये के प्रतीक में वास्तु संबंधी भयंकर दोष है, जो रुपये के अवमूल्यन के साथ ही देश की अर्थनीति को नुकशान पहुँचायेगा, और यह भविष्यवाणी पूरी तरह सत्य साबित हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि न तो डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने और न ही श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने रुपये के प्रतीक में वास्तु संबंधी दोष को दूर करने के संदर्भ में कोई कदम उठाया, जिसका परिणाम आज डॉलर की तुलना में रुपया ऐतिहासिक गिरावट के साथ 74 के रेकॉर्ड स्तर को पार कर चुका है।’
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तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को लिखे पत्र का जिक्र करते हुए श्री झांझरी ने कहा कि मैंने प्रधानमंत्री को इस पत्र के जरिये सूचित किया था कि हिंदी के ‘रÓ में बीच में एक लाईन डालकर इस प्रकार रुपये का प्रतीक बनाया गया है, जो उसका गला काटता प्रतीत होता है। वास्तु के नजरिये से यह भयंकर दोष है क्योंकि वास्तु के अनुसार घर के उत्तर-पूर्व के कोने में वास्तु पुरुष का सिर होता है। कोई भी व्यक्ति अगर उत्तर-पूर्व को काटकर गृह निर्माण करता है तो वास्तु उस परिवार को तबाह कर देता है।
रुपये के नये प्रतीक में भी ‘रÓ का गला काट दिया गया है, जो उसके पतन का संकेत देता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार और बात-बात में वास्तु की महिमा का बखान करने वाले वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी रुपये के प्रतीक में संशोधन हेतु कोई कदम नहीं उठाया, जिसका परिणाम रोज गिर रहा रुपया आज 74 के आंकड़े को पार कर चुका है।
उल्लेखनीय है कि 2012 में जब श्री झांझरी ने डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखा था, तब डॉलर के मुकाबले रुपया 44 के स्तर पर था, जो विगत सिर्फ 6 सालों में 30 रुपया गिरकर 74 तक पहुंच चुका है। देश की आजादी के बाद रुपये के प्रतीक को जारी करने के पूर्व 65 सालों में सिर्फ 44 रुपये ही गिरा था, जबकि रुपये के प्रतीक को लागू करने के बाद से सिर्फ 8 सालों में 30 रुपये गिर चुका है।
सोचने की बात है कि जबकि देश में युद्ध, आतंकवाद, दंगे-फसाद अथवा किसी प्रकार की भयंकर प्राकृतिक आपदा भी नहीं है, जिसके चलते रुपये का इतना भारी अवमूल्यन हो। ऐसे में सरकार को तत्काल रुपये के प्रतीक में वास्तु सम्मत सुधार करने हेतु गंभीरतापूर्वक कदम उठाने होंगे, वर्ना डॉ. मनमोहन सिंह तथा श्री नरेन्द्र मोदी की उम्र पार कर चुका रुपया ‘सेंचुरी’ भी मार जाये तो कोई बड़ी बात नहीं।