यूरोप के नक्शे पर एक नाम को लेकर पिछले 27 सालों से बहस चल रही है. मामला सिकंदर महान से जुड़ा होने के कारण ऐसा होना लाजिमी भी है. दरअसल 1991 में यूगोस्लाविया के विघटन से क्षितिज पर एक स्वतंत्र देश उभरा. इस नए देश का नाम मकदूनिया (Macedonia) रखा गया. लेकिन तत्काल ही यूनान (ग्रीस) ने अपने इस नए पड़ोसी के नाम पर ऐतराज जताया. ऐसा इसलिए क्योंकि ग्रीस में पहले से ही इस नाम से एक प्रांत है.
वजह
दरअसल प्राचीन इतिहास में वर्तमान मकदूनिया और उत्तरी ग्रीस जिस रोमन साम्राज्य का हिस्सा थे, उसका नाम भी मकदूनिया था. अलेक्जेंडर द ग्रेट यानी महान सिकंदर को मकदूनिया का ही शासक माना जाता है. लिहाजा उनकी विरासत पर दावेदारी को लेकर नए मकदूनिया और ग्रीस में जंग छिड़ गई. इसलिए ही ग्रीस ने नए देश के नाम पर आपत्ति उठाई.
इसका नतीजा यह हुआ कि संयुक्त राष्ट्र ने इस नए देश को “the former Yugoslav Republic of Macedonia” (पूर्व यूगोस्लाविया गणराज्य का मकदूनिया) कहा. ग्रीस ने 2008 में मकदूनिया के नाटो का सदस्य बनने में भी रोड़ा लगाते हुए वीटो कर दिया. ग्रीस ने इसके यूरोपीय संघ का सदस्य बनने की महत्वाकांक्षा पर भी रोक लगा दी.
क्या निकला हल?
1991 से ही जारी रस्साकशी और मंथन के बीच पिछले साल मकदूनिया में सरकार बदलने के बाद इस दिशा में प्रगति हुई. संविधान में नॉर्थ शब्द जोड़कर इसका नया नाम नॉर्थ मकदूनिया रखने का प्रस्ताव दिया गया. इस जून में मकदूनिया और ग्रीस में इस आशय में एक समझौता हुआ. इसके तहत यह व्यवस्था हुई कि यदि नाम में परिवर्तन होता है तो ग्रीस यूरोपीय संघ और नाटो में इसका समर्थन करेगा. उसके बाद नाटो ने जुलाई में मकदूनिया को गठबंधन में शामिल होने की खातिर बातचीत शुरू करने के लिए आमंत्रित किया था. उस वक्त नाटो के प्रमुख जेंस स्टॉल्टेनबर्ग ने कहा था कि मकदूनिया नाटो का सबसे नया सदस्य बनने में सक्षम तभी होगा जब नए नाम को रायशुमारी में मंजूरी मिलेगी. नाटो में शामिल होना चाह रहे देशों को मौजूदा सदस्यों की एकमत से मंजूरी की जरूरत होती है.
नॉर्थ मकदूनिया नाम को नहीं मिला अपेक्षित समर्थन
इस नए नाम के लिए ही रविवार को जनमत संग्रह यानी रायशुमारी कराई गई. इसमें एक-तिहाई लोगों ने वोट डाले, जबकि इसके लिए कम से कम 50 प्रतिशत वोटों की दरकार थी. इसके साथ ही नाम में बदलाव के पक्ष में मकदूनियाई संसद में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत भी होती है. लिहाजा अपेक्षित समर्थन नहीं मिला लेकिन यहां के प्रधानमंत्री ने कहा कि वे नाटो और यूरोपीय संघ में मकदूनिया को शामिल कराने के लिए संकल्पबद्ध हैं. लिहाजा इसके प्रयास किए जाते रहेंगे. हालांकि देश की 120 सीटों में से 49 सीटों पर विपक्षी राष्ट्रवादी ताकतों का कब्जा है. ऐसे में जब नाम बदलने के लिए अपेक्षित 50 प्रतिशत वोटों की रायशुमारी नहीं हुई है तो संसद में दो-तिहाई बहुमत से नाम बदलवाने की उम्मीदों पर फिलहाल पानी फिर गया है.
नाटो का रुख
हालांकि नाटो के प्रमुख जेंस स्टॉल्टेनबर्ग ने रविवार को हुई रायशुमारी में मकदूनिया का नाम बदले जाने को मिले भारी समर्थन की तारीफ की और इसे यूनान के साथ दशकों पुराने टकराव को खत्म करने का ऐतिहासिक मौका करार दिया. स्टॉल्टेनबर्ग ने ट्वीट कर कहा, ‘‘मैं सभी राजनीतिक नेताओं एवं पार्टियों से अपील करूंगा कि वे इस ऐतिहासिक मौके का फायदा उठाने के लिए रचनात्मक और जिम्मेदाराना तरीके से काम करें.’’ उन्होंने कहा, ‘‘नाटो के दरवाजे खुले हुए हैं.’’ स्टॉल्टेनबर्ग ने यह भी कहा कि पश्चिमी सैन्य गठबंधन में मकदूनिया की सदस्यता का मार्ग प्रशस्त करने की दिशा में बड़ा कदम है. बहरहाल, स्टॉल्टेनबर्ग ने इस बात पर जोर दिया कि नाटो में मकदूनिया को तभी शामिल किया जा सकता है जब सारी ‘‘राष्ट्रीय प्रक्रियाएं’’ पूरी कर ली जाएं.