आधुनिक दौर में भी अंधविश्वास खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार को एक परिवार परंपरानुसार बड़वे (ओझा) की मदद से हादसे में मृत परिजन की आत्मा लेने अस्पताल पहुंचा। वार्ड में खुलेआम चली क्रियाओं को देख अन्य रोगी और उनके परिजन सहम गए। अस्पताल प्रशासन भी इसे अंधविश्वास मानता है, लेकिन उसने यह सब रोकने की कोशिश नहीं की।
जिला अस्पताल में आदिवासी समाज की परंपरा का निर्वाह
दरअसल 25 जून 2018 को गजराजसिंह भिंडे निवासी ग्राम अकलु छत से गिरकर घायल हो गया था। उसे जिला अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। उसकी आत्मा को ले जाने की प्रक्रिया जिला अस्पताल के मेल वार्ड में डेढ़ से दो घंटे तक चली। तलवार, दारू, दीया, अगरबत्ती, पानी का कलश, पूजा की थाली रखी रख शंकर नामक बड़वे ने विधि संपन्न करवाई। इस दौरान परिजन भावुक हो गए और माहौल गमगीन हो गया। जिला अस्पताल में दो घंटे तक चली विधि।
यह सब आदिवासी समाज में व्याप्त मान्यता को लेकर हुआ। मान्यता के अनुसार दुर्घटना में किसी परिजन की मौत होने पर, उसकी आत्मा लेने परिजन वहां पहुंचते हैं, जहां उसकी मृत्यु होती है। जब तक उसकी आत्मा घर नहीं लाई जाती, तब तक घर में कोई भी मंगल कार्य नहीं हो सकता। आत्मा को गांव ले जाकर मृतक का नुक्ता (मृत्युभोज) कि या जाता है। इस दौरान बकरे, मुर्गे की बलि दी जाती है और शराब भी चढ़ाई जाती है। नुक्ते में पूरे गांव के लोग शामिल होते हैं।
यह अंधविश्वास है। ग्रामीणों को समझाया जाता है , लेकिन वे मानते नहीं है। रीति रिवाज करते हैं।
आदिवासी समाज में ये रूढ़िवादी परंपरा लंबे समय से है। इसे एकदम दूर नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिक इसे अंधविश्वास कहते हैं, किंतु समाजजनों को इस पर विश्वास है।