सांसद विधायकों के वकालत करने पर पाबन्दी की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है , जबकि अभी बार काउंसिल ऑफ इंडिया की कमेटी की रिपोर्ट अभी सार्वजनिक होना बाकी है. कोर्ट के निर्देश पर इसे लिफाफे में या सार्वजनिक तौर पर पेश किया जाएगा.
गौरतलब है कि बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सांसदों, विधायकों को वक़ील के तौर पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि बार काउंसिल के विधान और नियमावली के अनुसार कहीं से भी वेतन पाने वाला कोई भी व्यक्ति वकालत नहीं कर सकता, क्योंकि वकालत को पूर्णकालिक पेशा है. याचिका में यह सवाल उठाया गया है कि सांसद और विधायक सरकारी खजाने से वेतन और भत्ते लेते हैं तो वे प्रेक्टिस कैसे कर सकते हैं.
बता दें कि याचिका के साथ 1994 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला भी संलग्न किया गया है, जिसमें प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले एक एलएलबी पास डॉक्टर को कोर्ट ने पैरवी करने से रोक दिया था कि वो तब तक वकालत के योग्य नहीं माने जाएंगे जब तक कि वो डॉक्टर के पद से इस्तीफा ना दे दें. यह बात सांसद और विधायक पर भी लागू होती है.
इसलिए याचिका में मांग की गई है कि सांसद या विधायक जब तक पद पर है तब तक उसकी वकील के रूप में प्रैक्टिस पर पाबंदी लगा देनी चाहिए. पद की शपथ लेते ही उसका लाइसेंस तब तक निलंबित कर देना चाहिए जब तक वो सांसद या विधायक है. पदमुक्त होने या इस्तीफा देने पर उसे काउंसिल से फिर लाइसेंस वैध करने की मांग करनी चाहिए.