‘सकट चौथ’ के दिन पूजा के दौरान सुने यह कथा, मिलेगा पुण्य

हर साल माघ मास में कृष्णपक्ष की चतुर्थी आती है। कहते हैं इस चतुर्थी का बड़ा ही महत्व है। वैसे इस चतुर्थी को हर जगह पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे ‘संकष्टी चतुर्थी’, ‘सकट चौथ’, ‘तिलकुट चौथ’, ‘माही चौथ’ अथवा ‘वक्रतुण्डी चतुर्थी’ आदि। इस बार सकट चौथ 31 जनवरी 2021 को आ रही है। कहते हैं ‘जो माताएं सकट चौथ के दिन निर्जला व्रत रखती हैं और पूरी श्रद्धा से गणेश भगवान की पूजा करती हैं, उनकी संतान सदा निरोग रहती है।’ आपको हम यह भी बता दें कि इस दिन गणेश जी के लिए व्रत रखना चाहिए और पूजा के दौरान उनकी कथा सुनना चाहिए। अंत में सभी को प्रसाद बांटना चाहिए। तो आइए जानते हैं आज ‘संकष्टी चतुर्थी’ की कथा।

‘संकष्टी चतुर्थी’ की व्रत कथा- एक नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला, महाराज न जाने क्यों मेरा आंवां पक नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर इसका कारण पूछा, तो राजपंडित ने कहा, -हर बार आंवां लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से ही आंवां पक सकेगा। राजा के आदेश से बलि की व्यवस्था की गयी। हर बार बलि के लिए जिस परिवार का नंबर आता है, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेजेगा। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आती है। वृद्धा का एक ही बेटा था, जो उसके भरण-पोषण का आसरा था, लेकिन राजा की आज्ञा मानना उसकी भी मजबूरी थी। दुखी वृद्धा सोचने लगी, कि उसका एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन उससे हमेशा के लिए दूर चला जायेगा। तभी उसे एक उपाय सूझा।

उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, -भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी। सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और वृद्धा सकट माता के सामने बैठकर पूजा-प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवां पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया। प्रातःकाल उठने पर कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया कि आंवां पक गया था और वृद्धा का बेटा सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे, यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तभी से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।

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