भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का त्योहार जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है. ऐसे में इस साल जन्माष्टमी 24 अगस्त को है और आमतौर पर कृष्ण जन्माष्टमी पर कृष्ण की बाल लीलाओं और राक्षसों के वध से जुड़ी कहानियों को याद किया जाता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान कृष्ण ने पूतना को राक्षस योनि से बाहर निकालकर उसका उद्धार कैसे किया.

कौन थी पूतना- आदिपुराण के अनुसार पूतना कालभीरू ऋषि की पुत्री थी. उसका नाम चारुमति था और कक्षीवान ऋषि के साथ उसका विवाह हुआ था. एक बार कक्षीवान ऋषि को किसी कार्य से अपने घर से दूर जाना पड़ा. उनके चले जाने के बाद चारुमति एक शुद्र के साथ रहने लगी.
जब ऋषि कक्षीवान लौटकर आये तो चारुमति के दुर्व्यवहार से बहुत दुखी हुए और उन्होंने अपने तपोबल से पूरी स्थिति जानने का प्रयास किया. सच्चाई जानने के बाद कक्षीवान बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने चारुमति को राक्षसिन होने का श्राप दिया. उसके बाद चारुमति राक्षसी बन गयी और बच्चों का मारकर उनका रक्त पीने लगी.
कृष्ण ने कैसे किया पूतना का उद्धार – कृष्ण को मारने के लिए एक बार कंस ने पूतना नामक राक्षसी को भेजा. पूतना ने कंस से वादा किया था कि वह 10 दिनों के अंदर ही कृष्ण का वध कर देगी. जब वह आकाश मार्ग से गोकुल पहुंची तब उसने नंद के घर कृष्ण के छठीं का उत्सव देखकर सोचा कि वह आज ही कृष्ण का वध कर देगी. आकाश से धरती पर उतरकर वह एक सुंदर स्त्री का वेश धारण करके नंद के घर में गयी.
घर के अंदर उस रुपवती स्त्री को कोई पहचान न सका. पालने में झूल रहे कृष्ण को पूतना से अपनी गोद में उठा लिया और उसे अपना दूध पिलाने लगी. वास्तव में पूतना ने अपने स्तनों में जहर लगा रखा था. जैसे ही उसने कृष्ण का मुंह अपने स्तन के पास लगाया, भगवान ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया और वह अपने राक्षसी रुप में आ गयी. इस तरह से कृष्ण की कृपा से पूतना का उद्धार हुआ और उसे राक्षस योनि से मुक्ति मिल गई.
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