हमारे शास्त्रों में तीन प्रकार के ऋण का वर्णन मिलता है. जहां पहला ऋण है देव ऋण, दूसरा ऋण है ऋषि ऋण और तीसरा जो ऋण है वह है पितृ ऋण. पितृ ऋण को श्राद्ध के माध्यम से उतारा जा सकता है और इसे उतारना आवश्यक भी होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्यता तथा सुख सौभाग्य की अभिवृद्धि हेतु तरह-तरह की कोशिशें की है, हमें किसी भी तरह से उनका ऋण तो उतारना ही होगा. तब ही हमारा मानव जीवन सार्थक होगा.

जब भी श्राद्ध आते हैं तो आप पितृ ऋण उतार सकते हैं. इसमें कोई अधिक खर्च नहीं आता है. इसे उतारने के लिए आपको साल में महज एक बार उनकी मृत्युतिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और फूल इत्यादि से श्राद्ध संपन्न कर और गौ ग्रास देकर, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन कराना होगा. इस तरह से पितृ ऋण संपन्न हो जाता है.
श्राद्ध कैसे करें…
जिस महीन की तारिख या तिथि को आपके पिता की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को श्राद्ध आदि किया जाता है. इसके अलावा आश्विन कृष्ण पक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध, तर्पण, गौ ग्रास और ब्राह्मणों को भोजन आदि कराना पड़ता है. बता दें कि इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं और हमें इससे सौभाग्य प्राप्त होता है. इस दौरान यदि किसी महिला का पुत्र न हो तो व खुद ही अपने पति का श्राद्ध कर सकती है.
श्राद्ध की शुरुआत और समापन…
श्राद्ध की शुरुआत भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से होती है. 16 दिनों तक श्राद्ध चलते हैं और इसका समापन आश्विन कृष्ण अमावस के साथ हो जाता है. बता दें कि 16 दिनों तक चलने के कारण श्राद्ध को सोलह श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है.
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