अमेरिका और अफगानिस्तान के आतंकी गुट तालिबान के बीच वर्षों की लंबी वार्ता के बाद शनिवार को कतर की राजधानी दोहा में शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए.
इस बीच, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि असल समझौता अब शुरू हुआ है और जैसा हम सोचते थे अब वो हो रहा है. अब तालिबान एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होगा या लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपना ढांचा तैयार करेगा. विदेश मंत्री सोमवार को दिल्ली में सेंटर फॉर रिसर्च (सीपीआर) के एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.
विदेश मंत्री ने कहा, ‘मैं लोगों को याद दिलाना चाहता हूं यह 2000-2001 वाला अफगानिस्तान नहीं है. तब से लेकर अब तक काफी चीजें बदली हैं.
अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए हमारा संदेश है कि यह वैश्विक हित का मामला है और यह एक उपलब्धि है जिसे पिछले 18 वर्षों में हासिल किया गया है.’ उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ हमारी मुहिम काम आई और पूरी दुनिया की इस पर नजर गई जिसमें जी-20 भी शामिल है.
बता दें कि अमेरिका और अफगानिस्तान के आतंकी गुट तालिबान के बीच वर्षों की लंबी वार्ता के बाद शनिवार को कतर की राजधानी दोहा में शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए.
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि तालिबान से हुआ समझौता तभी कारगर साबित होगा, जब तालिबान पूरी तरह से शांति कायम करने की दिशा में काम करेगा. इस समझौते के साथ ही अमेरिका और अफगान तालिबान ने 18 वर्षीय लंबे रक्तपात को समाप्त करने की पहल पर काम किया है.
द न्यूज इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के उपनेता और मुख्य वार्ताकार मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात की ओर से शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जबकि अमेरिकी दूत जल्माय खलीलजाद ने वॉशिंगटन की ओर से हस्ताक्षर किए.
हस्ताक्षर समारोह में अफगान तालिबान और अफगान सरकार के अधिकारियों के साथ ही और अमेरिका, कतर और पाकिस्तान के नेताओं ने भी भाग लिया.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी पाकिस्तान की ओर से दोहा में अमेरिका-तालिबान शांति समझौते पर हस्ताक्षर के गवाह बनें. इससे पहले शनिवार को कुरैशी ने दोहा में खलीलजाद से मुलाकात की थी और अमेरिका व तालिबान ने कतर की राजधानी में एक ऐतिहासिक शांति समझौते की तैयारी भी की थी.