चमोली जिले में समुद्रतल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बदरीनाथ धाम से आठ किमी दूर स्थित वसुधारा जलप्रपात का धार्मिक महत्व तो है ही, यात्री यहां शांति एवं सुकून तलाशने भी पहुंचते हैं। इस बार बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद से अब तक यहां तीन हजार से अधिक यात्री और देशी-विदेशी पर्यटक पहुंच चुके हैं।

बदरीनाथ से तीन किमी आगे देश के अंतिम गांव माणा तक मोटर मार्ग है। यहां से शुरू होता है वसुधारा जल प्रपात तक का थका देने वाला सफर। लेकिन, यहां पहुंचकर ऐसी अनुभूति होने लगती है, मानो हम किसी अलौकिक स्थान पर आ गए हैं। लगभग 150 मीटर ऊंची पहाड़ी के शीर्ष से गिर रही जलधारा के छींटे तन पर पड़ते ही रास्ते की थकान पलभर में उड़नछू हो जाती है। इतनी ऊंचाई पर वायु और जल के मिश्रण से उत्पन्न सुमधुर संगीत हृदय के तारों को झंकृत कर देता है। इस जल प्रपात का छींटा भी पड़ने से मनुष्य के समस्त विकार मिट जाते हैं। इसलिए बदरीनाथ आने वाले श्रद्धालुओं के मन में यहां आने की इच्छा जरूर रहती है।
अष्ट वसु ने किया था तप-
मान्यता है कि यहां अष्ट वसु (आप यानी अयज, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष व प्रभाष) ने कठोर तप किया था, इसलिए इस जल प्रपात का नाम वसुधारा पड़ा। यह जल प्रपात इतना ऊंचा है कि पर्वत के मूल से शिखर तक एक नजर में नहीं देखा जा सकता। यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए माणा गांव से घोड़ा-खच्चर और डंडी-कंडी की सुविधा भी उपलब्ध है।
सहदेव ने त्यागे थे प्राण, अजरुन ने गांडीव-
भारत-चीन सीमा से लगे इस क्षेत्र के किसी गांव में जब भी देवरा यात्र (भक्तों को भगवान के दर्शन की यात्र) आयोजित होती है तो देवी-देवता और यात्र में शामिल लोग पवित्र स्नान के लिए वसुधारा जरूर पहुंचते हैं। मान्यता है कि राजपाट से विरक्त होकर पांडव द्रोपदी के साथ इसी रास्ते से होते हुए स्वर्ग गए थे। कहते हैं कि वसुधारा में ही सहदेव ने अपने प्राण और अर्जुन ने अपना धनुष गांडीव त्यागा था।
दो घंटे में तय होती पांच किमी की दूरी-
वसुधारा के लिए फुट ट्रेक माणा गांव से शुरू होता है। सरस्वती मंदिर से गुजरने के बाद पांच किमी लंबा यह ट्रेक कठिन हो जाता है, क्योंकि यहां जमीन बेहद कठोर और पथरीली है, इसलिए माणा से वसुधारा तक की ट्रेकिंग में दो घंटे लग जाते हैं। मार्ग पर भोजन और पानी की भी कोई सुविधा नहीं है।
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal