New Delhi: चेक बुक हो पीली या लाल, दाम सिक्के हों या शोहरत, कह दो उनसे जो ख़रीदने आएं हों तुम्हें, हर भूखा आदमी बिकाऊ नहीं होता है ये कविता है हिंदी पत्रकारिता के शिखर पुरूष धर्मवीर भारती की। शो बंद होने पर कपिल शर्मा महसूस कर रहे राहत, अब पूरी करेंगे अपनी ये फिल्म….
कुछ लोग सबकुछ करके भी किसी एक विधा में सिद्धहस्त नहीं हो पाते तो कोई-कोई बस एक ही विधा साध पाते हैं या सिर्फ एक रचना से नाम कमा लेते हैं। पर वे लोग विरले होते हैं, जिनका सबकुछ उत्कृष्ट हो, हर कृति नई बुलंदियों को छूकर आए। धर्मवीर भारती का नाम ऐसे ही लोगों में शामिल है। जहां से भी देखो उनके साहित्यिक कद की उंचाई एक समान ही दिखती है।
डॉ. धर्मवीर भारती आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ के प्रधान संपादक भी रहे हैं। डॉ। धर्मवीर भारती को 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। उनका उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ हिन्दी साहित्य के इतिहास में सदाबहार माना जाता है। यह हैरत की बात है कि खुद धर्मवीर भारती अपनी जिस रचना ‘गुनाहों के देवता’ को ‘कलात्मक रूप से अपरिपक्व’ मानते रहे, वही बरसों तक हिंदी की पांच सबसे अधिक बिकने वाली किताबों में शुमार होती रही है।
धर्मवीर भारती भारतीय पत्रकारिता के शिखर पुरूषों में से हैं। इससे बढ़कर वे साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दी पत्रकारिता में उन्होंने ‘धर्मयुग’ जैसी सांस्कृतिक पत्रिका को स्थापित किया और ढाई दशक से भी ज्यादा समय तक शीर्ष पर बनाए रखा। बता दें कि धर्मवीर भारती एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने ‘धर्मयुग’ के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर रखा था। यहां तक कि अपनी साहित्य सेवा भी। वे ‘धर्मयुग’ ही ओढते, बिछाते, खाते, पहनते थे। उनका हर पल ‘धर्मयुगमय’ था।
साहित्यकार और सम्पादक होने के बावजूद डॉ धर्मवीर भारती की छवि एक सैडिस्ट की ही रही। उन्होंने अपने किसी भी जूनियर को कभी आगे नहीं आने दिया। वे ऐसे हालात पैदा कर देते थे कि सम्पादकीय सहयोगी तो क्या, क्लेरिकल स्टॉफ तक उनसे खौंप खाता था। पत्रकारिता की प्रतिष्ठा से ज्यादा उन्हें बैनेट, कोलमैन एण्ड कम्पनी के पैसों की चिन्ता होती थी।
25 दिसम्बर 1926 को जन्में डॉ। धर्मवीर भारती ने कवि, लेखक, नाटककार और सामाजिक चिंतक के रूप में ख्याति पाई। 20 साल की उम्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से MA हिन्दी में सबसे अधिक नम्बर लाने वाले धर्मवीर भारती को ‘चिन्तामणि घोष’ अवार्ड मिला था। उन्हें पद्मश्री, भारत भारती सम्मान, संगीत नाटक अकादमी के अलावा केडिया न्यास का एक लाख रुपए का पुरस्कार भी मिला था।
केडिया न्यास के संयोजकों पर लोगों ने शंकर गुहा नियोगी की हत्या में षडयंत्रकारी होने का आरोप भी लगाया था, लेकिन भारतीजी ने उसे नकार दिया और पुरस्कार ग्रहण किया। डॉ। धर्मवीर भारती की उल्लेखनीय कृतियों में देशान्तर, ठण्डा लोहा, सपना अभी भी, कनुप्रिया, टूटा पहिया, उपलब्धि, उदास तुम, तुम्हारे चरण, प्रार्थना की कडी आदि प्रमुख है। श्री जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन के दिनों में उनकी कविता ‘मुनादी’ ने धूम मचाई थी। 1971 के भारत-पाक युद्ध में वे खुद मोर्चे पर रिपोर्टिंग के लिए गए थे। 1960 में धर्मयुग में आने के बाद 1997 तक वे कभी भी इलाहाबाद नहीं गए। 37 साल बाद अंततः 1997 में उनकी अस्थियां ही इलाहाबाद संगम में विसर्जित की गई।
रचनाएं
कविता
ठंडा लोहा (1952)
सात गीत वर्ष (1959)
कनुप्रिया (1959)
सपना अभी भी (1993)
आद्यन्त (1999)
उपन्यास
गुनाहों का देवता(1949)
सूरज का सातवाँ घोडा (1952)
ग्यारह सपनों का देश (प्रारंभ और समापन) 1960