भारत-पाक के बीच 1971 में हुए युद्ध में अंबाला के वायुवीरों और खड़गा कोर की अहम भूमिका रही थी। यहां तीन दिसंबर 1971 को पहली बार पाक ने अंबाला एयरबेस को निशाना बनाया। इसके बाद चार दिसंबर को दोबारा से एयरबेस पर हमला करने की कोशिश की तो वायुवीर सचेत हो गए। वीरों ने अमृतसर एयरबेस का इस्तेमाल करते हुए पाक को एक के बाद एक कई बार नुकसान पहुंचाया।
इतना ही नहीं अंबाला की भारतीय सेना की खड़गा कोर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। इस कोर के अदम्य साहस के कारण पूर्वी पाक में स्थित पाकिस्तानी सेना के जवानों में डर का माहौल था। 15 दिन तक चले इस युद्ध ने बांग्लादेश के गठन में अहम भूमिका निभाने का काम किया। इसमें अंबाला के मेजर विजय रतन भी शहीद हुए थे। उनकी याद में अंबाला में एक विजय रतन चौक बनाया गया। जो आज भी छावनी की मार्केट की शान है।
अंबाला एयरबेस पर हमला से हुई थी युद्ध की शुरुआत
जानकार बताते हैं कि उस समय पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) पर गतिरोध चल रहा था। इसी दौरान पाक वायुसेना ने रणनीति बनाकर अंबाला एयरबेस समेत देश के कई एयरबेस पर हमला किया। अंबाला में वाक वायुसेना की यह कोशिश नाकाम रही। इसके बाद भी पाकिस्तानी वायुसेना ने एक और कोशिश की, जो नाकाम रही।
इसके बाद भारतीय वायुसेना ने मोर्चा संभाला और अमृतसर एयरबेस से पाक पर हमला किया। पाक सेना के भंडारण और अन्य ठिकानों को भारतीय वायुवीरों ने बर्बाद कर दिया। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में वर्ष 1971 के अक्टूबर में खड़गा कोर का गठन किया। इस कोर ने पूर्वी पाक के मगुरा, जैसोर, झेनिदा, खुलना, फरीदपुर सहित कई क्षेत्रों में विजय हासिल की और कोर का नाम चमकाया। इस युद्ध के बाद खड़गा कोर पश्चिम में चंडीमंदिर चली गई और वर्ष 1985 में खड़गा कोर को अंबाला लाया गया।
वायुसेना की पांच नंबर स्क्वाड्रन ने निभाया था अहम रोल
भारतीय वायुसेना की पांच नंबर स्क्वाॅड्रन को वर्ष 1971 में तीसरी बार युद्ध में उतारा गया था। इसकी कमान विंग कमांडर (बाद में ग्रुप कैप्टन) मनमोहन बीर सिंह तलवार ने संभाली। स्क्वाॅड्रन ने हमेशा की तरह अपना युद्ध दुश्मन देश के काफी अंदर तक पहुंचाया। तीन दिसंबर 1971 को शाम के समय भारतीय एयरबेस पर पाकिस्तान के एहतियाती हवाई हमले के प्रयास के बाद भारतीय वायुसेना की बम वर्षक इकाइयां, जो मध्य वायु कमान के परिचालन नियंत्रण में आती थीं, जवाबी कार्रवाई करने के आदेश प्राप्त करने वाली पहली इकाइयों में से थीं।
आधी रात से दस मिनट पहले टस्कर्स हवाई उड़ान भर गए। इससे उल्लेखनीय रूप से कम प्रतिक्रिया समय का पता चला। दृढ़ निश्चय करके वे सीधे सरगोधा के दुर्गम आसमान में वापस चले गए। इस युद्ध के दौरान स्क्वाॅड्रन ने विशेषकर छंब पर भूमि युद्ध में भी अधिक प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया। उन्होंने उस सेक्टर में दुश्मन के तोपखाना ठिकानों पर दिन के उजाले में कुछ हमले किए। उन्होंने छंब में पाकिस्तानी जमीनी अभियानों का समर्थन करने की पाकिस्तान एयर फोर्स (पीएएफ) की क्षमता को कम करने में मदद करने के लिए, चंदर और रिसालवाला में पीएएफ ठिकानों पर भी हमला किया था।