वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया सांख्यिकी मॉडल विकसित किया है, जो बाढ़ आने के समय का सटीक पता लगा सकता है। इस मॉडल को बनाने वाले वैज्ञानिकों की टीम में भारतीय मूल के वैज्ञानिक भी शामिल थे।
अमेरिका में द सिटी कॉलेज ऑफ न्यूयॉर्क के नासिर नजीब और नरेश देवीनेनी ने मिलकर इस मॉडल को विकसित किया है। नजीब ने कहा कि सामान्यत: बारिश होने के बाद नदियों का जल स्तर बढ़ने लगता है। यदि बारिश रुकती नहीं तो मैदानी इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है, लेकिन बाढ़ की भयावहता क्या होगी, इसका अनुमान लगाना बड़ा मुश्किल है। कई बार ऐसा भी होता है कि रातों-रात कई वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पानी में डूब जाता है और लोग घरों में ही कैद होने को मजबूर हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि लेकिन वायुमंडल और भूमि की सतह की स्थिति के आधार पर अब नए सांख्यिकी मॉडल के जरिये बाढ़ की भविष्यवाणी करना संभव है। इसकी मदद से बाढ़ आने के समय का सटीक निर्धारण किया जा सकता है। साथ ही बाढ़ के कारण होने वाली हानि को भी कम किया जा सकता है।
बाढ़ की तीव्रता इस बात पर निर्भर करती है कि नदियों में जल स्तर और पानी का प्रवाह कितना है। नदियां उफान पर तभी होंगी जब बारिश लंबे समय तक जारी रहे। जब वायुमंडल में कम दाब रहता है और बादल लगातार बरस रहे हों तो बाढ़ आने की संभावना ज्यादा रहती है, लेकिन नए सांख्यिकी मॉडल से बाढ़ के संभावित जोखिमों को कम किया जा सकता है।
भारत भी है सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित देश
भारत में हर साल बाढ़ से तबाही होती है। देश में कम से कम दस ऐसे क्षेत्र हैं, जहां प्रतिवर्ष बाढ़ का आना लगभग तय माना जाता है लेकिन अगर बाढ़ के कारण सारे देश में हाहाकार मचा हो तो इन क्षेत्रों में मौसमी विनाश की कल्पना कर पाना भी संभव नहीं है। पिछले कुछ दशकों के दौरान मध्य भारत जैसे क्षेत्र में भी लोग मूसलाधार बारिश और एकाएक भारी बारिश होने, बादल फटने की घटनाओं से सामना कर रहे हैं। भारत के ज्योलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा है इसीलिए यहां कई क्षेत्र बाढ़ की विभीषिका को लेकर संवेदनशील हैं। देश में ऐसे कुल इलाकों की संख्या 12.5 फीसद है।
इन राज्यों में खतरा अधिक
बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, केरल, असम, बिहार, गुजरात, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब ऐसे राज्य हैं जिनमें बाढ़ का ज्यादा असर होता है। मानसूनी बारिश के कारण ब्रrामपुत्र, गंगा, यमुना आदि नदियों में बाढ़ आने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है। इन नदियों के किनारे बसी आबादी के लिए बाढ़ खतरे और विनाश का पर्याय बन जाती है।