कानपुर सीट से तीन बार सांसद रहे चुके श्रीप्रकाश जायसवाल (75) पर कांग्रेस ने लगातार छठवीं बार भरोसा जताया है। कांग्रेस ने कानपुर लोकसभा सीट के लिए जायसवाल को प्रत्याशी बनाया है। जायसवाल का टिकट तय होने के बाद एक बार फिर कानपुर सीट पर हाईप्रोफाइल चुनाव होने की उम्मीद बढ़ गई है। अभी भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। अब भाजपा भी जायसवाल के कद के लिहाज से ही प्रत्याशी घोषित करेगी।
देश की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों में से एक कानपुर है। राम मंदिर आंदोलन के दौरान भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण ने 1991 में पहली बार यहां से परचम लहराया था। इसके बाद 1996 और 1998 में लगातार भाजपा चुनाव जीतने में कामयाब रही। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में जायसवाल को दूसरी बार मैदान में उतारा गया। पार्टी की रणनीति कामयाब रही और जायसवाल भाजपा के दुर्ग को भेदने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने 2004 और 2009 में भी जीत हासिल की। 2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी ने जीत की हैट्रिक लगा चुके जायसवाल को मात दी।
जायसवाल ने हार के बावजूद अपनी सक्रियता कम नहीं की। वह पार्टी के हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में भाग लेते रहे। प्रदेश अध्यक्ष, मेयर, गृह राज्यमंत्री, केंद्रीय कोयला मंत्री होने के कारण पार्टी आलाकमान के बीच भी उनकी पैठ ठीकठाक मानी जाती है।
विधानसभा और निकाय चुनाव में टिकटों को तय करने में भी आलाकमान ने उनकी ही राय ली। उनके कद को देखते हुए उनका टिकट तय माना जा रहा था। जायसवाल ने भी चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी।
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में कानपुर संसदीय सीट पर 51.83 फीसदी मतदान हुआ था। मुरली मनोहर जोशी ने जायसवाल को 2,22, 946 मतों से करारी मात दी थी। जोशी को 4,74,712 वोट मिले थे, जबकि जायसवाल को 2,51,766 वोट। बसपा के सलीम अहमद के खाते में 53,218 वोट गए, वहीं सपा के सुरेंद्र मोहन अग्रवाल को 25,723 वोट मिले थे।
मुसलिम, सवर्ण व वैश्य वोटों से मिलती रही जीत
कानपुर लोकसभा सीट पर करीब 33 लाख मतदाता हैं। मतदाताओं का जातिगत आंकड़ा देखें तो इनमें दलित करीब साढ़े तीन लाख, मुसलिम तीन लाख, ब्राह्मण ढाई लाख, वैश्य डेढ़ लाख, पिछड़ा पांच लाख व अन्य दो लाख हैं। क्षत्रिय वोट करीब डेढ़ लाख हैं। इनके अलावा पंजाबी वोटर भी हैं। जातिगत आधार पर जायसवाल वैश्य हैं, लेकिन कांग्रेस का परंपरागत सवर्ण, मुसलिम के साथ वैश्य और पिछड़ा वर्ग का वोट बैंक निर्णायक साबित होता है। जायसवाल को इसी समीकरण का फायदा तीन चुनाव में मिलता रहा। 2014 में मोदी लहर के चलते सवर्ण के साथ पिछड़ा वर्ग का वोट एकतरफा भाजपा को मिला, इससे कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा।
सोनिया गांधी से करीबी का मिला फायदा
पार्टी सूत्रों की मानें तो जायसवाल को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी होने का फायदा मिला है। पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी शहर सीट से किसी युवा नेता को टिकट देना चाह रहे थे। इसी कारण बीते दिनों जारी उम्मीदवारों की सूची में कानपुर के प्रत्याशी का नाम गायब था। सोनिया गांधी के दखल देने पर जायसवाल का टिकट फाइनल हुआ। बीते चुनाव में हार के बावजूद पार्टी के कार्यक्रमों और लोगों के बीच लगातार सक्रियता का भी लाभ जायसवाल को मिला।