देश में कोरोना महामारी के बीच अलग-अलग रंग के फंगस भी मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। ब्लैक, व्हाइट और यलो के बाद अब मध्यप्रदेश के जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में कोरोना मरीज में क्रीम कलर का फंगस मिलने से चिंता और बढ़ गई है। हालांकि एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया पहले ही कह चुके हैं कि फंगस के रंग को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है।
वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. विजयनाथ मिश्रा बताते हैं कि फंगस खुद को जीवित रखने और प्रसार के लिए रंग बदलता है। फंगस की गंभीरता उसके रंग से तय नहीं होती है। फंगस के कई प्रकार अलग-अलग तरह के रंग पैदा करते हैं जैसे की गुलाबी, लाल, नारंगी, पीला, हरा और ग्रे समेत अन्य रंग का दिख सकता है।
ये रंग सूरज की तेज रोशनी से हल्का भी पड़ सकता है और बारिश से धुल भी सकता है। सामान्य स्थिति में कोई भी फंगस की अपनी समूह विकसित करने की क्षमता रखता है। एक बार जब इसका समूह पूर्ण रूप से विकसित हो जाए या फिर कोई ऐसी स्थिति आए जब इसको जीवित रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व न मिलें तो इसका माइसीलियम (प्रजनन संरचना) वाला भाग जीवित रहने और प्रसार के लिए अपने भीतर कुछ बदलाव कर लेता है। इस स्थिति में फंगस को नई कलोनी बनाना छोड़कर कुछ अलग तरह के पदार्थ बनाना शुरू कर देता है और फंगस का बदलता रंग इसी का परिणाम है।
आखिर कैसे रंग बदलता है फंगस…
डॉ. विजयनाथ मिश्रा बताते हैं कि फंगस के भीतर कैरेटीनॉयड्स नामक तत्व होते हैं। ये उसके रंग के लिए जिम्मेदार होता है। कैरेटीनॉयड्स तीन तरह के होते हैं। पहला बीटा कैरोटीन (नारंगी), गामा कैरोटीन (नारंगी-लाल), अल्फा कैरोटीन (नारंगी-पीला) होता है। ये रंग फंगस को तेज धूप के साथ अन्य विपरीत परिस्थितियों में सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है। इसी की बदौलत फंगस शरीर में अपना दायरा बढ़ाता है।
बेरंग फंगस धूप में मर जाता है
डॉ. मिश्रा बताते हैं कि फंगस में दिखने वाला रंग उसकी बाहरी दीवार, कोशिका द्रव में जमा होता है। इसलिए कहा जा सकता है कि रंगीन फंगस बिना रंग वाले फंगस की तुलना में कम घातक और आक्रामक होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि रंग वाले फंगस की बाहरी दीवार मोटी होती है जिसके कारण वे मरते नहीं है। बिना रंग वाले फंगस धूप में मर जाते हैं लेकिन रंगीन फंगस धूप की किरणों से नहीं मरता है।
दबाव बढ़ने से भी बदलता है रंग
विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी के दौर में लोग एंटीबायोटिक का इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं। इससे खराब बैक्टीरिया के साथ स्वस्थ बैक्टीरिया भी मर रहा है। शरीर की कमजोर इम्युनिटी का फायदा उठाकर फंगस शरीर पर हमला बोलता है, शरीर में पहले से कई तरह की दवाओं के प्रभाव से बचने के लिए भी फंगस अपना रंग बदलता है। इसी का नतीजा है कि महामारी में अलग-अलग तरह के फंगस दिख रहे हैं।
सभी फंगस का इलाज एक जैसा
डॉ. मिश्रा बताते हैं कि फंगस का रंग कोई भी हो उसके इलाज का तरीका आमतौर पर एक जैसा ही होता है। इसमें एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन के साथ अन्य एंटी फंगल दवाएं चलती हैं। मरीज की स्थिति और संक्त्रस्मण के प्रभाव के आधार पर दवा और उसकी डोज तय होती है। ध्यान रहे फंगल इन्फेक्शन का इलाज घर पर बिलकुल न कराएं। हल्का लक्षण दिखने पर भी बिना देरी के डॉक्टर की सलाह लें।