खर्च के सीमित संसाधन और तेजी से घटती मांग को देखते हुए सरकार के पास मंदी की रफ्तार को थामने के लिए रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी ही प्रमुख हथियार रहेगी।

मांग को बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक की नीति न केवल आने वाले कुछ समय तक नरम ब्याज दर की स्थिति को बनाए रखने वाली हो सकती है बल्कि आरबीआइ नीति के जरिए मंदी से प्रभावित कुछ इंडस्ट्री सेक्टर के लिए अलग कदम भी उठा सकता है। मार्केट में कैपिटल इनफ्लो के लिए आरबीआइ इस वर्ष अब तक रेपो रेट में 1.10 परसेंट की कटौती कर चुका है।
शॉर्ट टर्म में सरकार के पास मंदी की रफ्तार को रोकने के उपाय बेहद सीमित हैं। रेवेन्यू में अपेक्षाकृत वृद्धि नहीं होने के चलते सरकार के खजाने पर काफी दबाव है। इसलिए इकोनॉमी के लिए किसी तरह के राहत पैकेज की संभावना नहीं है।
एसएंडपी समूह की रेटिंग और वित्तीय एजेंसी क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्ट डीके जोशी का कहना है ‘सरकार के पास राहत पैकेज देने की गुंजाइश वर्तमान में नहीं के बराबर है। इसलिए रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी कुछ करने का उपाय हो सकती है।’
क्रिसिल की एक ताजा रिपोर्ट में इकोनॉमी के मौजूदा हालात को देखते हुए जीडीपी की वृद्धि दर के अनुमान को 7.1 परसेंट से घटाकर 6.9 परसेंट कर दिया है। एजेंसी का मानना है कि सभी तरह के उपाय करने के बावजूद जीडीपी की दर का सात परसेंट से ऊपर जाना मुश्किल है। इकोनॉमी के कई सेक्टर मांग की कमी से जूझ रहे हैं। ग्रामीण बाजार में भी मांग में कमी बनी हुई है। इसके चलते चालू वित्त वर्ष में कंपनियों का प्रदर्शन भी पिछले साल के मुकाबले कमजोर रह सकता है।
साल 2019-20 में कॉरपोरेट रेवेन्यू में 7.5 से 8 परसेंट की बढ़त रहने की उम्मीद है। बीते दो वित्त वर्ष में कंपनियों के रेवेन्यू में डबल डिजिट ग्रोथ रही है। गौरतलब है कि केयर रेटिंग के पहली तिमाही के आकलन में कंपनियों का प्रदर्शन पिछले साल के मुकाबले निराशाजनक रहा है।सरकार ने अगले पांच साल में 5 टिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने का लक्ष्य रखा है। लेकिन जोशी मानते हैं कि जीडीपी की मौजूदा ग्रोथ रेट पर इसे पाना संभव नहीं है। इसके लिए हर साल कम से कम 8 परसेंट की जीडीपी दर की आवश्यकता होगी।
‘सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि पहले ही साल यह सात परसेंट से कम हो रही है। इसे अगर दुरुस्त नहीं किया गया तो आने वाले वर्षो में जीडीपी की अपेक्षित दर में बढ़ोतरी होती रहेगी।’अभी ऑटोमोबाइल, एफएमसीजी और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग समेत घरेलू इंडस्ट्री के कई सेक्टर मंदी से जूझ रहे हैं। ग्रामीण बाजार समेत पूरे देश में मांग बुरी तरह प्रभावित हुई है।
इसे देखते हुए क्रिसिल का मानना है कि इस वित्त वर्ष में ऐसे सभी सेक्टर में रेवेन्यू में सिंगल डिजिट में बढ़ोतरी होने की आशंका है। जोशी मानते हैं कि इकोनॉमी को गति देने के लिए सरकार को रिफॉर्म पर फोकस करना होगा। खासतौर पर भूमि और श्रम सुधारों पर बल देने की जरूरत है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर सरकार का फोकस पहले ही बना हुआ है।
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