अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद का फैसला सुप्रीम कोर्ट से आने के बाद मंदिर की तरफ से पैरवी कर रहे तमाम लोगों के बीच विवाद के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन माह में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है. हालांकि, ट्रस्ट बनने से पहले ट्रस्ट में अधिकार और वर्चस्व की होड़ के मामले खबर दिखाई गई और उसके बाद विवाद भी हुआ.
अब ट्रस्ट बनने के बाद रामलला की पूजा पाठ और भोग राग कौन करेगा इसको लेकर पुजारी बनने की नई जंग शुरू हो गई है. इसे लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखे जा रहे हैं. गुरु भाइयों के बीच होड़ शुरू हो गई है, तो दूसरी तरफ रामलला विराजमान पक्षकार और राम जन्मभूमि न्यास में सदस्य त्रिलोकी नाथ पांडे ने भी पुजारी बनने के लिए अपना दावा ठोक दिया है.
अयोध्या में राममंदिर बनने के बाद पुजारी बनने की होड़ और वर्चस्व की शुरुआत हुई. राम मंदिर में पक्षकार महंत धर्मदास ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राम मंदिर के रिसीवर को पत्र भेजे, जिसमें उन्होंने 1949 में अपने गुरु बाबा अभिराम दास के राम मंदिर का पुजारी होने का जिक्र किया.
साथ ही उनके खिलाफ पुजारी होते हुए दर्ज मुकदमे और इस आधार पर मंदिर और मस्जिद पक्षकारों द्वारा उनको पुजारी मानते हुए पार्टी बनाने का उल्लेख किया है.
पत्र में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑर्डर में उनके गुरु बाबा अभिराम दास को ही तत्कालीन पुजारी माना है, इसी के आधार पर उन्होंने उसी परंपरा और कानून का हवाला देकर गठित होने वाले ट्रस्ट में खुद को ट्रस्टी और पुजारी बनाने की मांग की है