राजनीति या सिनेमा नहीं था जयललिता का लक्ष्य, जानिए क्या बनना चाहती थीं अम्मा

amma-is-no-more_1481042831विद्यार्थी जीवन से ही जयललिता काफी होशियार रहीं। उन्हें किताबें पढ़ने का भी बहुत शौक था। दसवीं की परीक्षा में उन्होंने राज्य भर में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। उनकी जीवनी “अम्मा: जयललिताज जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वीन” के मुताबिक वह वकील, डॉक्टर या प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहती थीं। फिल्म या राजनीति उनका लक्ष्य कभी नहीं था।

 ऐसे बनी अभिनेत्री

जयललिता के पिता का निधन तभी हो गया था जब वह दो साल की थी। इसके बाद सारी जिम्मेदारी उनकी माता वेदा के ऊपर आ गयी। वेदा ने दोनों बच्चों के बेहतर पालन पोषण के लिए फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया। अपनी व्यस्तताओं के वजह से वह बच्ची जयललिता को समय नहीं दे पाती थी।
इससे जयललिता पढ़ाई में और सक्रिय रहने लगी। माँ की फिल्मी सक्रियता के कारण घर में अक्सर फिल्मी दुनिया के लोगों का आना जाना होता था। उन लोगों के व्यवहार से जयललिता काफी चिढ़ती थी। वह अपनी बचपन की सहेली श्रीमती को अक्सर बताया करती थी कि उन्हें फिल्मी दुनिया से नफरत है क्योंकि यहां लोग काफी स्वार्र्थी होते हैं और अभद्रता से घूरते हैं।
एक बार वह अपनी मां के साथ एक फिल्मी समारोह में गयी थी। वहीं एक निर्देशक ने फिल्म में काम करने का ऑफर दिया। जयललिता ने सोचा था कि इसी बहाने दो महीने की छुट्टियां भी कट जाएंगी। बाद में उन्हें एक अन्य फिल्म का ऑफर मिला जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।
इस पर मां ने काफी दबाव डाला और फिर जयललिता ने खराब आर्थिक स्थिति के कारण हामी भर दी। अब अभिनय के साथ पढ़ाई संभव नहीं थी तो उन्होंने इसे छोड़ देने का निर्णय लिया। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, एक बार जब मैं कोई काम शुरू करती हूँ तो उसे आधे मन से नहीं करती भले ही वह कुत्ते को नहलाना ही क्यों न हो? ठीक यही फिल्मों में काम करने के साथ भी हुआ।

राजनीतिक शुरुआत

फिल्मी करियर के दौरान ही एमजीआर से जयललिता की नजदीकियां बढ़ गई थी। एमजीआर ने बाद में करुणानिधि से मतभेद के बाद अलग पार्टी बना ली और जल्दी ही राज्य के मुख्यमंत्री बने। इसी दौरान दोनों करीब एक दशक के अलगाव के बाद फिर से एक साथ हो गये।
जीवनी में वरिष्ठ पत्रकार सोलई के हवाले से कहा गया कि एमजीआर को इस समय में किसी ऐसे चेहरे की जरूरत थी जो रैलियों में लोगों को खींच सके और करुणानिधि के हमलों की ढाल बन सके। उन्होंने जयललिता को पार्टी का प्रचार मंत्री बना दिया। जयललिता अपने पहले ही सार्वजनिक भाषण में वाकपटुता से काफी लोकप्रिय हो गई।
भीड़ से सवाल करने का अंदाज तथा आकर्षक व्यक्तित्व उन्हें लोकप्रिय बनाता चला गया। बाद में उनकी विद्वता और अंग्रेजी पर शानदार पकड़ के कारण एमजीआर ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। एमजीआर के निधन के बाद पार्टी में नेतृत्व संकट की स्थिति आयी।
नेतृत्व की होड़ में एमजीआर की पत्नी जानकी शुरुआत में इनसे आगे निकल गयी पर कुछ ही दिनों में यह सरकार बर्खास्त कर दी गयी। बाद में दोनों धड़ा पुन: साथ हो गये और जयललिता एकमात्र चेहरा बनी।
 
 

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