रेत से घिरे यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) को एक बड़ी सफलता हासिल हुई है। लॉकडाउन के 40 दिनों में एक प्रयोग के दौरान यूएई ने दुनिया को यह साबित कर दिया है कि रेत में फल-सब्जी की खेती की जा सकती है। वैज्ञानिकों ने रेत में तरबूज और लौकी जैसे फल-सब्जियां उगाई हैं।
रेत से घिरे होने के कारण यूएई अपनी ताजे फल-सब्जियों की 90 फीसदी जरूरत आयात के जरिए पूरी करता है लेकिन अब यूएई इस प्रयोग का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर सकता है। इससे यूएई को काफी फायदा होता नजर आ रहा है। दरअसल, लिक्विड नैनोक्ले यानि कि गीली चिकनी मिट्टी की पद्धति का इस्तेमाल कर यह सफलता हासिल की गई है।
यह एक तरह से मिट्टी को पुनर्जीवित करने का तरीका है, इससे पानी के इस्तेमाल में 45 फीसदी तक की कमी आ जाएगी। यूएई ने एलान किया है कि वो इस पद्धति का इस्तेमाल कर एक फैक्ट्री लगाएगा और इसका व्यावसायिक उपयोग शुरू किया जाएगा। लिक्वि़ड नैनोक्ले तकनीक में चिकनी मिट्टी के बहुत छोटे-छोटे कण द्रव्य के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं।
इस पद्धति में सॉइल केमिस्ट्री के कैटॉनिक एक्सचेंज कैपेसिटी के सिद्धांत का इस्तेमाल किया गया है। रसायनिक संरचना की वजह से चिकनी मिट्टी के कण में निगेटिव चार्ज होता है लेकिन रेत के कण में पॉजिटिव चार्ज होता है। इस पद्धति को विकसित करने वाली नॉर्वे की कंपनी डेजर्ट कंट्रोल के मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष ओले सिवट्सन का कहना है कि विपरीत चार्ज होने की वजह से जब रेत में मिट्टी का घोल मिलता है तो वो एक बांड बना लेते हैं।
इस बांड को जब पानी मिलता है तो उसके पोषक तत्व इसके साथ चिपक जाते हैं। इस तरह से एक ऐसी मिट्टी तैयार हो जाती है, जिसमें पानी रुकने लगता है और पौधे जड़ पकड़ने लगते हैं। सिवट्सन ने बताया कि 40 स्क्वेयर फीट के शीपिंग कंटेनर में लिक्विड नैनोक्ले का प्लांट लगाया जाएगा।
रेत प्रधान देशों में इस तरह के कई कंटेनर लगाए जाएंगे ताकि वहां की स्थानीय मिट्टी से उस देश के रेगिस्तान में खेती की जा सके। इस पद्धति का इस्तेमाल अगर एक वर्ग मीटर जमीन पर किया जा रहा है तो इसका खर्च 150 रुपये आता है।