PM मोदी : अगर आपकी नीयत साफ है और निष्ठा मां भारती के प्रति है, तो आपका हर निर्णय किसी ना किसी समाधान की तरफ ही बढ़ेगा। सफलता और असफलता हमारा वर्तमान और भविष्य तय नहीं करती। हो सकता है आपको किसी फैसले के बाद जैसा सोचा था वैसा परिणाम न मिले, लेकिन आपको फैसला लेने में डरना नहीं चाहिए।
ये सिर्फ विचारधारा का प्रश्न नहीं है, बल्कि माइंडसेट का भी विषय है। आप क्या करते हैं, ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपका माइंडसेट पॉजिटिव है या नेगेटिव है।
आप देखिए, जो दुनिया में आतंक फैला रहे हैं, जो दुनिया में हिंसा फैला रहे हैं, उनमें भी कई हाइली लर्न्ड, हाइली स्किल्ड लोग हैं। दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से दुनिया को मुक्ति दिलाने के लिए दिनरात प्रयोगशालाओं में जुटे हुए हैं।
आपका ज्ञान, आपकी स्किल, एक समाज को, एक राष्ट्र को गौरवान्वित भी कर सकती है और वो समाज को बदनामी और बर्बादी के अंधकार में भी धकेल सकती है। इतिहास और वर्तमान में ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
जिस प्रकार, सत्ता में रहते हुए संयम और संवेदनशील रहना पड़ता है, उसी प्रकार हर विद्वान को, हर जानकार को भी उनके प्रति ज़िम्मेदार रहना पड़ता है जिनके पास वो शक्ति नहीं है। आपका ज्ञान सिर्फ आपका नहीं बल्कि समाज की, देश की धरोहर है।
आपको ये भी हमेशा याद रखना होगा कि ज्ञान, विचार और स्किल, स्थिर नहीं है, ये सतत चलने वाली प्रक्रिया है। और इसमें कोर्स करेक्शन की गुंजाइश भी हमेशा रहेगी। लेकिन नॉलेज और पावर, दोनों रिस्पॉन्सिबिलिटी के साथ आते हैं।
विश्व भारती तो अपने आप में ज्ञान का वो उन्मुक्त समंदर है, जिसकी नींव ही अनुभव आधारित शिक्षा के लिए रखी गई। ज्ञान की, क्रिएटिविटी की कोई सीमा नहीं होती, इसी सोच के साथ गुरुदेव ने इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
जब आप अपने कैंपस में बुधवार को ‘उपासना’ के लिए जुटते हैं, तो स्वयं से ही साक्षात्कार करते हैं। जब आप गुरुदेव द्वारा शुरू किए गए समारोहों में जुटते हैं, तो स्वयं से ही साक्षात्कार करते हैं।
गुरुदेव कहते थे- हे श्रमिक साथियों, जानकर साथियों, हे समाजसेवियों, हे संतों, समाज के सभी जागरूक साथियों। आइये समाज की मुक्ति के लिए मिलकर प्रयास करें।
गुरुदेव टैगोर ने जो एकता का संदेश दिया, उसे कभी ना भूलें। गुरुदेव ने इस विश्वविद्यालय में भारत की आत्मा को जिंदा रखा और उसकी पहचान को आगे बढ़ाया।
गुरुदेव टैगोर के लिए विश्व भारती सिर्फ ज्ञान देने वाली एक संस्था मात्र नहीं थी। ये एक प्रयास है भारतीय संस्कृति के शीर्षस्थ लक्ष्य तक पहुंचने का।
आप सिर्फ एक विश्वविद्यालय का ही हिस्सा नहीं हैं, बल्कि एक जीवंत परंपरा का हिस्सा भी हैं। गुरुदेव अगर विश्व भारती को सिर्फ एक यूनिवर्सिटी के रूप में देखना चाहते, तो वो इसे ग्लोबल यूनिवर्सिटी या कोई और नाम दे सकते थे, लेकिन उन्होंने इसे विश्व भारती विश्वविद्यालय नाम दिया।