यहाँ जानिए मकर संक्रांति की मुख्य कथा

मकर संक्रांति हिन्दू धर्म का मुख्य त्यौहार है। यह पर्व भगवान सूर्य को समर्पित होता है। इस दिन भगवान सूर्य का धनु राशि से मकर में प्रवेश होता है इसी वजह से इस पर्व को मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं और इस दिन पर सूर्य दक्षिण की यात्रा समाप्त कर उत्तर दिशा की तरफ बढ़ने लगते हैं।

कहा जाता है मकर संक्रांति के दिन व्रत करना और दान देना बड़ा ही शुभ होता है। जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें विशेष लाभ मिलता है। इस दिन अगर दान दें तो सौ गुना अधिक फल मिलता है। मकर संक्रांति के उत्सव पर तिल का दान सबसे बड़ा और अहम् होता है। ऐसे में आज हम लेकर आए हैं मकर संक्रांति व्रत कथा जो आपको जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए।

मकर संक्रांति व्रत कथा: पुरानों में जो कथा वर्णित है उसके अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर राशी के देवता हैं इसी कारन इसे मकर संक्रांति कहा जाता हैं। इसके अलावा संक्रांति की कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलता है। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरवों की सेना के सेनापति गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मुत्यु का वरदान प्राप्त था। अर्जुन के बाण लगाने के बाद उन्होंने इस दिन की महत्ता को जानते हुए अपनी मृत्यु के लिए इस दिन को निर्धारित किया था। भीष्म जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता और उसे इस मृत्युलोक में पुनः जन्म लेना पड़ता हैं। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तभी भीष्म पितामह ने प्राण त्याग दिए।

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