पर शिकागो स्थित फीमेल हेल्थ कंपनी के नए उत्पाद एफसी टू के उत्पादन से स्थिति में कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। अमेरिका के फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने पिछले माह ही इस उत्पाद को मंजूरी दी है। इस मामले में स्त्री और पुरुषों के कंडोम की बिक्री और उपयोग में भारी अंतर है जिस कारण से भी महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी स्थिति में कारगार सुधार नहीं हो पा रहा है। पिछले वर्ष सारी दुनिया में करीब तीन करोड़ 50 लाख महिला कंडोम बाँटे गए थे जबकि इसकी तुलना में 10 अरब से भी ज्यादा पुरुषों के लिए कंडोम बाँटे गए थे।
पुरुषों के कंडोम जहाँ बहुत अधिक सस्ते होते हैं और इनका इस्तेमाल करना भी आसान होता है लेकिन उन देशों में जहाँ बड़े पैमाने एड्स के मरीज हैं या लोग एचआईवी पाजिटिव हैं तब भी पुरुष कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसका सीधा सा अर्थ होता है कि इन देशों में महिलाएँ इन बीमारियों को लेकर अधिक जोखिमपूर्ण स्थितियों में होती हैं। अपने पहले मॉडल की तरह से महिलाओं के लिए बना यह नया कंडोम अधिक नरम, पारदर्शी अधिक बड़ी थैलीनुमा शीथ के साथ साथ नमनीय बाहरी और अंदरूनी रिंग्स (छल्लों) वाला है। इसे पॉलीयूरेथीन की बजाय सिंथेटिक रबर से बनाया गया है जोकि उत्पादन के लिहाज से भी सस्ती होती है।
फिर भी विकासशील देशों में इसकी कीमत एक समस्या हो सकती है क्योंकि अमेरिका जैसे विकसित देश में ही यह करीब 60 सेंट का है जबकि बड़े पैमाने पर उत्पादित होने वाले पुरुष कंडोम्स की तुलना में ज्यादा है। इसे कम करने की जरूरत है। पर इसके संबंध में अच्छी बात यह है कि एफसीटू को कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से भी मान्यता मिली है। पिछले वर्ष फीमेल हेल्थ कंपनी ने 1 करोड़ 40 लाख कंडोम्स विदेषों में भी वितरित किए थे। इसके अलावा दो करोड़ 10 लाख पुराने कंडोम भी विदेशों को दिए गए थे। लेकिन इसके बारे में अमेरिका में भी बहुत सी भ्रांतियाँ हैं और बहुत से लोगों का कहना है कि ये इतना विचित्र है कि महिलाएँ ही इसे उपयोग में नहीं लाएँगी।
इस वर्ष सारी दुनिया में ऐसे 5 करोड़ कंडोम वितरित किए जाएँगे और जैसे जैसे इनके उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, इनकी कीमतें भी कम होंगी। पर इसकी बिक्री की रणनीति विकासशील देशों में इसका भविष्य तय करेगी क्योंकि एशियाई देशों में सामाजिक स्वीकृति पर बहुत ध्यान दिया जाता है और चूँकि ये वेश्याओं के लिए बहुत अधिक उपयोगी होंगे इसलिए इनकी स्वीकार्यता धीरे धीरे बढ़ेगी और महिलाओं के बीच इसके उपयोग को लेकर धीरे धीरे जागरूकता आएगी।
साभार:- न्यूज़मंथन.कॉम
(नोट:- इस खबर में कितना सच्चाई है इसकी जिम्मेदारी उज्ज्वल प्रभात नही ले रहा| इस खबर को न्यूज़मंथन.कॉम से उठाया गया है)