मोदी की रणनीति से चीन के ही लोग बने ड्रैगन की दुश्मन, सात टुकड़ों में बंट...

मोदी की रणनीति से चीन के ही लोग बने ड्रैगन की दुश्मन, सात टुकड़ों में बंट…

New Delhi: चीन की दीवार में विरोध का दीमक लग चुका है। बहुत मुमकिन है कि जल्दी ही चीन सात टुकड़ों में बंट जाए, क्योंकि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अंदर ही अंदर तीन धड़ों में बदल चुकी है।मोदी की रणनीति से चीन के ही लोग बने ड्रैगन की दुश्मन, सात टुकड़ों में बंट...योगी सरकार का बड़ा ऐलान, अब बकरीद में इस बार नहीं काटे जाएंगे ऊंट…

आने वाले महीनों में ड्रैगन का हश्र देखने लायक होगा। चीन के हालात पर नजर रखने वाले जासूसों और विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का पतन तय है। क्योंकि जिस तरीके से सरकार विपक्ष पर कार्रवाई कर रही है और देश में से वकील और मानव अधिकार कार्यकर्ता गायब हो रहे हैं उससे लोगों में बहुत रोष है।

 

 

शंघाई प्रांत के जियांग ज़ेमिन और हू जिन्ताओ की अगुआई वाले गुट और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अगआई वाले बीजिंग प्रांत के ज़ेनजियांग गुट में शीत युद्ध शुरू हो चुका है।

खास बात ये है कि दोनों ही गुट, एक-दूसरे का प्रभाव खत्म करना चाहते हैं और इसके लिए राजनीति भी खुब जमकर की जा रही है। साथ ही पर्दे के पीछे लेबर पार्टी में उथल-पुथल मचे होने के साथ-साथ, मौजूदा सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हो चुकी है।

चीनी मीडिया पर प्रतिबंध की वजह से भले ही देश के विभिन्न प्रांतों में हो रहे विरोध प्रदर्शनों की खबरें लोगों तक नहीं पहुंच रहीं हैं। लेकिन इस कुछ सक्रिय कार्यकर्ताओं की मानें तो इसी साल होने वाले 19वें राष्ट्रीय कांग्रेस में कम्युनिस्ट पार्टी को बहुत बड़े विरोध का सामना करना होगा।

जानिए क्या है पूरा माजरा-

– झिंगजियांग, मंचूरिया, हांगकांग, तिब्बत, चेंगदू, झांगझुंग और शांघाई यूं तो चीन के सात बड़े इलाके हैं, लेकिन एक क्रांति के बाद इनके अलग-अगल देश बन जाने की संभावना है।

– चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का मुख्य उद्देश्य किसी भी कीमत पर सभी पर अपना एकाधिकार बनाकर रखना है। लेकिन सन् 2000 के बाद से ही यहां के सरकार की इस पॉलिसी के खिलाफ लोग लामबंद होना शुरू हो गए थे।

– हालांकि चीन की सरकार अपना पूरा ध्यान डोकलाम विवाद और उत्तर कोरिया का द्वारा अमेरिका को परमाणु हमले के विवाद पर टिकाने का प्रयास कर रही है।

– एक ओर चीन में भारत के खिलाफ के प्रदर्शनों को स्पॉन्सर करने में व्यस्त है तो दूसरी तरफ चीन में लोकतंत्र स्थापित करने की मांग करने वाले लोग इस मौके को भुनाने में कसर नहीं छोड़ रहे। वो लोगों को देश में एक पार्टी की सत्ता के खिलाफ आंदोलन छेड़ने के लिए तैयार करने में जुटे हैं।

– 1989 के थियानमन चौक में हुई चीन की क्रांति को दोहराने की तैयारी की जा रही है। भले ही इसके लिए 5 साल या 10 साल का समय लगे, लेकिन आजादी के लिए कमर कस ली गई है।

– शी जिनपिंग की अगुवाई वाली कम्युनिस्ट पार्टी कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रही है। अधिकतर लोग जिंगपिंग के प्रोपगंडा को सिरे से नकार रहे हैं।

– चीन में गरीब और मुट्ठी भर अमीरों के बीच की खाई बढ़ती ही जा रही है। सिर्फ सरकार के टॉप लीडरों और जिंनपिंग के करीबी लोग ही फल-फूल रहे हैं। यही कारण है कि अब चीन की जनता कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहती है।

– चीन का झींजियांग प्रांत एक करोड़ उइगर मुसलमानों वाला इलाका है। हाल ही में अफगानिस्तान के कई गुटों ने इस क्षेत्र के लोगों को फिर से अपना समर्थन देना शुरू कर दिया है। इसके पहले चीन ने अफगानिस्तान से आतंकी ट्रेनिंग दिए जाने की खबरों के बाद इस बॉर्डर एरिया को बंद कर दिया था।

– चीन के झींजियांग प्रांत में ताजा विवाद भाषा के मुद्दे पर उपजा है। हुआ यूं कि सरकार ने जुलाई की शुरुआत में देश के स्कूलों से विघर्स भाषा को हटाने का निर्णय लिया और मंडारीन को अनिवार्य भाषा बना दिया।

– रमजान में रोजा रखने पर बैन लगाने के बाद ये दूसरा ऐसा फैसला था जिसने इस प्रांत के लोगों को हिला कर दिया। यही नहीं पिछले 6-7 महीनों में चीन की सरकार ने झींजियांग के मुस्लिमों को निशाना बनाते हुए कई विवादास्पद फैसले लिए हैं।

– मंचूरिया में 2008 से ही सरकार के खिलाफ विद्रोह का बिगुल लोगों ने फूंक रखा है। सूत्रों का कहना है कि 2010-2011 में सरकार ने लगभग 1।5 विरोध प्रदर्शनों और दंगों को झेला है। ये संख्या दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है।

– डोकलाम विरोध के साए तले झींगजियांग प्रांत में लगभग 137 खूनी प्रदर्शन हो चुके हैं। माना जाता है कि झींगजियांग प्रांत के पार्टी चीफ चेन क्यूआंगो ने जुलाई के महीने में रोजाना औसतन 4 विरोध-प्रदर्शनों का सामना किया।

 – इसी तरह सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू में जुलाई के महीने में 103 विरोध प्रदर्शन रिपोर्ट हुए। इन प्रदर्शनों में से ज्यादातर लोकतंत्र के समर्थकों ने प्रदशर्न की शुरुआत की।

– नोबेल पुरस्कार विजेता लियू शियाबाओ की मौत और उसके बाद उनके पार्थिव शरीर को समुद्र में दफनाने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ चीन और हांग-कांग में प्रदर्शनों की शुरुआत हो गई।

माना जा रहा है कि चीन का विध्वंस भी सोवियत संघ जैसा ही अचानक होगा। जून 1981 में बंद दरवाजों के पीछे जब माओ के पॉलिसी की समीक्षा की जा रही थी, तब पार्टी के भीतर कमियों को स्वीकार किया गया था।

साथ ही ये भी कहा गया था कि पार्टी के भीतर की एकता और जनता और पार्टी के बीच की सामंजस्य ही चीन में समाजवाद के विकास की गारंटी है। लेकिन ये गारंटी ही अब धुंधली होती जा रही है।

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