हर साल मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदायिनी एकादशी मनायी जाती है. इस दिन ही भगवान कृष्ण के मुख से पवित्र श्रीमदभगवद् गीता का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनायी जाती है. विष्णु पुराण के अनुसार ये एक व्रत रखने से व्यक्ति को 23 एकादशियों के व्रत का पुण्य प्राप्त होता है. साथ ही उसके पितरों के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं, जिससे पितृ संबन्धी परेशानियां हमेशा के लिए समाप्त हो जाती हैं. इस बार मोक्षदा एकादशी कल यानि 25 दिसंबर को मनायी जाएगी.
मान्यता है कि जिस घर में पितृ असंतुष्ट होते हैं, वहां पर कोई कार्य नहीं बनता. किसी न किसी तरह की अड़चने आती रहती हैं. वंश रुक जाता है. मोक्षदा एकादशी का व्रत पितरों के लिए मोक्ष के द्वार खोलने वाला बताया गया है. इस दिन व्रत रखने के बाद उसका पुण्य अपने पितरों को अर्पित करें. इससे उन्हें नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलेगी और स्वर्ग की प्राप्ति होगी. जब पितर संतुष्ट होंगे तो आपको व आपके परिवार को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होगा और घर में सुख और संपन्नता आएगी.
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके पूजा स्थल पर भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें. इसके बाद विघ्नहर्ता भगवान गणेश, भगवान श्रीकृष्ण और महर्षि वेदव्यास की मूर्ति या तस्वीर सामने रखें. घर में भगवद् गीता हो तो इसका भी पाठ करें. भगवान को धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें. व्रत कथा पढ़ें या सुनें. आरती गाएं इसके बाद भगवान से किसी प्रकार से हुई गलती के लिए क्षमा मांगे. दूसरे दिन की सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन खिलाकर व दक्षिणा देकर व्रत खोलें.
ये है व्रत कथा
पुरातन काल में गोकुल नगर में वैखानस नाम के राजा राज्य करते थे. एक रात उन्होंने देखा उनके पिता नरक की यातनाएं झेल रहे हैं. उन्हें अपने पिता को दर्दनाक दशा में देख कर बड़ा दुख हुआ. सुबह होते ही उन्होंने राज्य के विद्धान पंडितों को बुलाया और अपने पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा. उनमें से एक पंडित ने कहा आपकी समस्या का निवारण भूत और भविष्य के ज्ञाता पर्वत नाम के पंहुचे हुए महात्मा ही कर सकते हैं. अतः आप उनकी शरण में जाएं. राजा पर्वत महात्मा के आश्रम में गए और उनसे अपने पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा. महात्मा ने उन्हें बताया कि उनके पिता ने अपने पूर्व जन्म में एक पाप किया था. जिसको अब वे नर्क में भोग रहे हैं.
राजा ने कहा, कृपया उनकी मुक्ति का मार्ग बताएं. महात्मा बोले, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है, उस एकादशी का आप उपवास करें. एकादशी के पुण्य के प्रभाव से ही आपके पिता को मुक्ति मिलेगी. राजा ने महात्मा के कहे अनुसार व्रत किया उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और वे स्वर्ग में जाते हुए अपने पुत्र को आशीर्वाद देते हुए गए.