मैं समस्त देशवासियों के साथ साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति शहीद वीर भगतसिंह को नमन करता हूं: PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ कार्यक्रम के जरिए देशवासियों को संबोधित कर रहे हैं। यह उनके रेडियो कार्यक्रम की 69वीं कड़ी है। इसे आकाशवाणी और दूरदर्शन के समूचे नेटवर्क पर प्रसारित किया जा रहा है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 अगस्त को ‘मन की बात’ कार्यक्रम के जरिए लोगों को संबोधित किया था।

ये कुछ नियम कोरोना के खिलाफ लड़ाई के हथियार हैं, और हम ये ना भूलें कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं, आप स्वस्थ रहें, आपका परिवार स्वस्थ रहे, इसी शुभकामना के साथ बहुत बहुत धन्यवाद, नमस्कार।
मेरे प्यारे देशवासियों कोरोना के इस कालखंड में मैं फिर एक बार आपको याद कराऊंगा- मास्क अवश्य रखें, चेहरा ढंके बिना बाहर ना जाएं, दो गज की दूरी का नियम, आपको और आपके परिवार को भी बचा सकता है।

11 अक्तूबर का दिन भी हमारे लिए बहुत ही विशेष होता है। इस दिन हम भारत रत्न लोक नायक जय प्रकाश जी को उनकी जयंती पर स्मरण करते हैं। जेपी ने हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में अग्रणी भूमिका निभाई है।

दो अक्तूबर हम सबके लिए पवित्र और प्रेरक दिवस होता है। यह दिन मां भारती के दो सपूतों, महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री को याद करने का दिन है। गांधी जी के आर्थिक चिंतन में भारत की नस-नस की समझ थी, भारत की खुशबू थी। पूज्य बापू का जीवन हमें याद दिलाता है कि हम ये सुनिश्चित करें कि हमारा हर कार्य ऐसा हो, जिससे, गरीब से गरीब व्यक्ति का भला हो। वहीं शास्त्री जी का जीवन हमें विनम्रता और सादगी का संदेश देता है।

शहीद भगतसिंह पराक्रमी होने के साथ-साथ विद्वान भी थे, चिंतक थे। अपने जीवन की चिंता किए बगैर भगतसिंह और उनके क्रांतिवीर साथियों ने ऐसे साहसिक कार्यों को अंजाम दिया, जिनका देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान रहा। वे जब तक जिए, सिर्फ एक मिशन के लिए जिए और उसी के लिए उन्होंने अपना बलिदान दे दिया- वह मिशन था भारत को अन्याय और अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाना।
कल 28 सितंबर को हम शहीद वीर भगतसिंह की जयंती मनाएंगे। मैं समस्त देशवासियों के साथ साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति शहीद वीर भगतसिंह को नमन करता हूं।

आज की तारीख में खेती को हम जितना आधुनिक विकल्प देंगे, उतना ही वो, आगे बढ़ेगी, उसमें नए-नए तौर-तरीके आएंगे, नए नवाचार जुड़ेंगे। तमिलनाडु के थेनि जिले के तमिलनाडु केला फार्मर प्रोड्यूस कंपनी की कहानी जो सकारात्मकता और सफलता से परिपूर्ण है। ऐसा ही एक लखनऊ का किसानों का समूह है, उन्होंने नाम रखा है ‘इरादा फार्मर प्रोडयूसर’।

मुझे कई ऐसे किसानों की चिट्ठियां मिलती हैं, किसान संगठनों से मेरी बात होती है, जो बताते हैं कि कैसे खेती में नए-नए आयाम जुड़ रहे हैं, कैसे खेती में बदलाव आ रहा है। जो मैंने उन से सुना है, जो मैंने औरों से सुना है, मेरा मन करता है, आज ‘मन की बात’ में उन किसानों की कुछ बातें जरूर आप को बताऊं। साथियो, गुजरात में बनासकांठा के रामपुरा गांव में इस्माइल भाई करके एक किसान हैं। उनकी कहानी भी बहुत दिलचस्प है।

पुणे और मुंबई में किसान साप्ताहिक बाजार खुद चला रहे हैं। इन बाजारों में लगभग 70 गांवों के साढ़े चार हजार किसानों का उत्पाद, सीधे बेचा जाता है- कोई बिचौलिया नहीं। ग्रामीण-युवा, सीधे बाजार में, खेती और बिक्री की प्रक्रिया में शामिल होते हैं- इसका सीधा लाभ किसानों को होता है, गांव के नौजवानों को रोजगार में होता है।

तीन–चार साल पहले ही महाराष्ट्र में फल और सब्जियों को एपीएमसी के दायरे से बाहर किया गया था। इस बदलाव ने कैसे महाराष्ट्र के फल और सब्जी उगाने वाले किसानों की स्थिति बदली, इसका उदाहरण हैं, श्री स्वामी समर्थ फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड- ये किसानों का समूह है।

जानते हैं, इन किसानों के पास क्या अलग है- अपने फल-सब्जियों को, कहीं पर भी, किसी को भी, बेचने की ताकत है, और ये ताकत ही, उनकी, इस प्रगति का आधार है। अब यही ताकत, देश के दूसरे किसानों को भी मिली है।
हरियाणा के सोनीपत जिले के किसान श्री कंवर चौहान ने बताया कि 2014 में फल और सब्जियों को एपीएमसी अधिनियम से बाहर करने के बाद उन्हें और आस-पास के साथी किसानों को बहुत फायदा हुआ।

कोरोना के इस कठिन समय में भी हमारे देश के कृषि क्षेत्र ने फिर अपना दमखम दिखाया है, देश का कृषि क्षेत्र, हमारे किसान, हमारे गांव, आत्मनिर्भर भारत का आधार हैं, ये मजबूत होंगे तो आत्मनिर्भर भारत की नींव मजबूत होगी।
हमारे यहां कहा जाता है, जो जमीन से जितना जुड़ा होता है, वो बड़े से बड़े तूफानों में भी अडिग रहता है। कोरोना के इस कठिन समय में हमारा कृषि क्षेत्र, हमारा किसान इसका जीवंत उदाहरण है।

आप देखिए कि परिवार में कितना बड़ा खजाना हो जाएगा, रिसर्च का कितना बढ़िया काम हो जाएगा, हर किसी को कितना आनंद आएगा और परिवार में एक नया प्राण, नई उर्जा आएगी।
मैं आग्रह करूंगा कि परिवार में हर सप्ताह आप कहानियों के लिए कुछ समय निकालें और ये भी कर सकते हैं कि परिवार के हर सदस्य को हर सप्ताह के लिए, एक विषय तय करें, जिस दिन परिवार के सभी सदस्य मिलकर एक-एक कहानी कहेंगे।

मैं कथा सुनाने वाले सबसे आग्रह करूंगा कि हम आजादी के 75 वर्ष मनाने जा रहें हैं, क्या हम हमारी कथाओं में पूरे गुलामी के कालखंड की जितनी प्रेरक घटनाएं हैं उनको, कथाओं में प्रचारित कर सकते हैं। विशेषकर 1857 से 1947 तक, हर छोटी-मोटी घटना से अब हमारी नई पीढ़ी को कथाओं के द्वारा परिचित करा सकते हैं। मुझे विश्वास है कि आप लोग जरूर इस काम को करेंगे।

बंगलूरू में एक विक्रम श्रीधर हैं, जो बापू से जुड़ी कहानियों को लेकर बहुत उत्साहित हैं, और भी कई लोग इस क्षेत्र में काम कर रहे होंगे- आप जरूर उनके बारे में सोशल मीडिया पर शेयर करें।
मुझे http://gaathastory.in जैसी वेबसाइट के बारे में जानकारी मिली, जिसे अमर व्यास और उनके साथी चलाते हैं, अमर व्यास आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए करने के बाद विदेश चले गए, वापिस आए और समय निकालकर कहानियों से जुड़े रोचक कार्य कर रहे हैं।

चेन्नई की श्रीविद्या वीर राघवन भी हमारी संस्कृति से जुड़ी कहानियों को प्रचारित, प्रसारित, करने में जुटी हैं। वहीं कथालय और द इंडियन स्टोरी टेलिंग नेटवर्क नाम की दो वेबसाइट भी इस क्षेत्र में जबरदस्त कार्य कर रही हैं।
कहानियां लोगों के रचनात्मक और संवेदनशील पक्ष को सामने लाती हैं, उसे प्रकट करती हैं। मैं अपने जीवन में बहुत लंबे अरसे तक एक परिव्राजक के रूप में रहा। घुमंत ही मेरी जिंदगी थी। हर दिन नया गांव, नए लोग, नए परिवार।

हमारे यहां तरह-तरह की लोक-कथाएं प्रचलित हैं। मैं देख रहा हूं कि कई लोग किस्सागोई की कला को आगे बढ़ाने के लिए सराहनीय पहल कर रहे हैं।
साथियो, भारत में कहानी कहने की, या कहें किस्सागोई की एक समृद्ध परंपरा रही है। पूरे भारत में कई भारतीय कहानी सुनाने की कला को लोकप्रिय बना रहे हैं। इन दिनों, विज्ञान से संबंधित कहानियों को लोकप्रियता मिल रही है।

कहानियों का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी की मानव सभ्यता। कहानियां लोगों के रचनात्मक और संवेदनशील पक्षा को सामने लाती हैं, उसे प्रकट करती हैं। कहानी की ताकत को महसूस करना हो तो जब कोई मां अपने छोटे बच्चे को सुलाने के लिए या फिर उसे खाना खिलाने के लिए कहानी सुना रही होती है तब देखें।

हमें जरूर एहसास हुआ होगा कि हमारे पूर्वजों ने जो विधाएं बनाई थीं वो आज भी कितनी महत्वपूर्ण हैं और जब नहीं होती हैं तो कितनी कमी महसूस होती है। ऐसी ही एक विधा जैसा मैंने कहा, कहानी सुनाने की कला है।
इतने लंबे समय तक, एक साथ रहना, कैसे रहना, समय कैसे बिताना हर पल खुशी भरा कैसे हो? तो कई परिवारों को दिक्कतें आईं और उसका कारण था।

कोरोना के इस कालखंड में पूरी दुनिया अनेक परिवर्तनों के दौर से गुजर रही है। आज, जब दो गज की दूरी एक अनिवार्य जरूरत बन गई है को इसी संकट काल ने परिवार के सदस्यों को आपस में जोड़ने और करीब लाने का काम भी किया है।

 

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