PM मोदी : तमिल एक ऐसी सुंदर भाषा है, जो दुनिया भर में लोकप्रिय है। बहुत से लोगों ने मुझे तमिल लिटरेचर की क्वालिटी और इसमें लिखी गई कविताओं की गहराई के बारे में बहुत कुछ बताया है।
मैंने इस सवाल पर विचार किया और खुद से कहा मेरी एक कमी ये रही कि मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा– तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया, मैं तमिल नहीं सीख पाया।
कुछ दिन पहले हैदराबाद की अपर्णा रेड्डी जी ने मुझसे ऐसा ही एक सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि– आप इतने साल से पीएम हैं, इतने साल सीएम रहे, क्या आपको कभी लगता है कि कुछ कमी रह गई। अपर्णा जी का सवाल बहुत सहज है लेकिन उतना ही मुश्किल भी।
साथियो, कभी-कभी बहुत छोटा और साधारण सा सवाल भी मन को झकझोर जाता है। ये सवाल लंबे नहीं होते हैं, बहुत सिंपल होते हैं, फिर भी वे हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं।
कुछ लोग समझते हैं कि इनोवेशन करने के लिए आपका साइंटिस्ट होना जरूरी है, कुछ सोचते हैं कि दूसरों को कुछ सिखाने के लिए आपका टीचर होना जरूरी है। इस सोच को चुनौती देने वाले व्यक्ति हमेशा सराहनीय होते हैं।
असम में हमारे मंदिर भी, प्रकृति के संरक्षण में, अपनी अलग ही भूमिका निभा रहे हैं, यदि आप, हमारे मंदिरों को देखेंगे, तो पाएंगे कि हर मंदिर के पास तालाब होता है।
असम के श्री जादव पायेन्ग को ही देख लीजिए। आप में से कुछ लोग उनके बारे में जरूर जानते होंगे अपने कार्यों के लिए उन्हें पद्म सम्मान मिला है।
काजीरंगा नेशनल पार्क एंड टाइगर रिजर्व अथॉरिटी कुछ समय से एनुअल वाटरफॉल सेंसस करती आ रही है। इस सेंसस से जल पक्षियों की संख्या का पता चलता है और उनके पसंदीदा हैबिटैट की जानकारी मिलती है।
साथियो, देशभर में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां लोग, ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ में, इसी तरह, अपना योगदान दे रहे हैं। आज यह एक भाव बन चुका है, जो आम जनों के दिलों में प्रवाहित हो रहा है।
जब हम इसी सोच के साथ आगे बढ़ेंगे, तभी सही मायने में आत्मनिर्भर बन पाएंगे और साथियो, मुझे खुशी है कि आत्मनिर्भर भारत का ये मंत्र, देश के गांव-गांव में पहुंच रहा है।
जब प्रत्येक देशवासी गर्व करता है, प्रत्येक देशवासी जुड़ता है, तो आत्मनिर्भर भारत, सिर्फ एक आर्थिक अभियान न रहकर एक नेशनल स्पिरिट बन जाता है।
ऐसे ही बहुत इनोवेटिव तरीके से लद्दाख के उरगेन फुत्सौग भी काम कर रहे हैं। उरगेन जी इतनी ऊंचाई पर ऑर्गेनिक तरीके से खेती करके करीब 20 फसलें उगा रहे हैं वो भी साइक्लिक तरीके से, यानी वो, एक फसल के वेस्ट को, दूसरी फसल में, खाद के तौर पर, इस्तेमाल कर लेते हैं।
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