मनोज श्रीवास्तव, लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के लिए 70वां स्वतंत्रता दिवस आंतरिक तूफान लेकर आया. शिवपाल ने अपनी ही सरकार को घेरते हुए इस्तीफा देने की धमकी दी तो उसकी धमक लखनऊ तक बड़ी तेजी से पहुंच गई. पार्टी कार्यालय में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने छोटे भाई व यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव का पक्ष लेते हुए कहा कि सरकार के करीबी गुर्गे और नौकरशाह उपेक्षा कर रहे हैं. माना जा रहा है कि पार्टी में कमजोर पड़ती स्थिति और स्वतंत्रता खतरे में पड़ता देखकर ही शिवपाल सिंह यादव ने जमीनों पर कब्जे और कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न के बहाने अखिलेश मंत्रिमंडल से हटने के लिए त्याग पत्र देने की धमकी दी थी. इसके बाद नेताजी ने शिवपाल की अहमियत बताकर उनके विरोधियों को संदेश देने की कोशिश की है, लेकिन क्या सचमुच नेताजी इससे चिंतित हैं, या यह भी उनका कोई चरखा दांव है?
उल्लेखनीय है कि दोपहर का सामना ने एक साल पहले ही लिखा था कि ‘यादव कुनबे में सब कुछ ठीक नहीं’- और तीन माह पहले भी लिखा था कि -‘घरेलू घमशान मुलायम परेशान’-! फिलहाल इस समय शिवपाल की सबसे बड़ी समस्या यह है कि मुख्यमंत्री कुछ चंद चहेते हैं, जो उस शिवपाल में उनके दुश्मन का दर्शन करा रहे हैं, जिस शिवपाल की गोद में खेल कर अखिलेश इस लायक बनें. शिवपाल अपने जिस प्रमुख सचिव से नाराज रहते थे, मुख्यमंत्री ने उसी विवादित अफसर को राज्य का मुख्य सचिव बना दिया. अपनी ही सरकार में ऐसे लगातार हमलों से शिवपाल आहत होते चले जा रहे थे. पंचायत चुनाव से लगायत कौमी एकता दल के विलय तक शिवपाल को लगातार अपमान का घूंट सहना पड़ा, लेकिन नेताजी के आदेश पर वह चुपचाप जहर पीते रहे.
कहा जाता है कि अखिलेश और शिवपाल में शीतयुद्ध सीएम के कुछ करीबियों द्वारा लगाई गई आग से भड़की है. सीएम ने अपने जिन खास दोस्तों की सलाह पर शिवपाल सिंह यादव के करीबी जिला पंचायत अध्यक्ष माया यादव एवं उनके पति विजय बहादुर यादव को राजधानी में जमीन कब्जाने का आरोप लगाकर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया व कानूनी कार्रवाई कराई, उन्हीं दोस्तों की सलाह पर उन्होंने उनका टिकट भी काट दिया था. उस वक्त समाजवादी पार्टी शिवपाल सिंह यादव के नेतृत्व में पंचायत चुनाव लड़ रही थी. बाद में शिवपाल व पार्टी के वरिष्ठ नेता भगवती सिंह के कहने पर मुलायम सिंह यादव ने विजय बहादुर यादव की पत्नी को प्रत्याशी बनाया तथा साजिश करने के आरोप में अखिलेश के खास दोस्तों को पार्टी के बाहर भी करवा दिया. बाद में हठ करके अखिलेश ना केवल अपने इन खास नेताओं की पार्टी में वापसी कराई वरन इन्हें एमएलसी भी बनवा दिया.
शिवपाल इस घटनाक्रम के बाद एक बार फिर अपनाम का घूंट पीकर रह गए. पहले कौमी एकता दल में विलय की घटना उसके बाद शिवपाल के खास पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष विजय बहादुर यादव के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी का काम किया. माफिया मुख्तार अंसारी की जिस पार्टी का विलय शिवपाल ने नेताजी की इच्छा बताकर कराया, उस विलय को सीएम ने छवि खराब करने वाला बताकर खत्म करवा दिया. इसके बाद शिवपाल के करीबी विजय बहादुर यादव और माया यादव पर इस तरह प्रशासनिक शिकंजा कर दिया गया मानो प्रदेश में किसी विपक्षी दल की सत्ता हो. इस संदर्भ में जिला पंचायत अध्यक्ष के करीबी भी कहते हैं कि जब माया देवी के विपक्षी उनको हराने में असफल हो गए तो साजिशन जमीन मामले में फंसा कर पार्टी से बाहर निकाने की पटकथा लिख दी. करीबियों को यह भी कहना है कि मुख्यमंत्री चाहे अपनी जिस एजेंसी से जांच करा लें, यदि माया यादव और विजय बहादुर यादव दोषी साबित हों तो जो चाहे सजा दे दें, लेकिन इस तरह साजिश करने वालों से बचकर रहें. सपा मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार आनंद दिवेदी के अनुसार नेताजी विपक्ष का हमला कुंद करने के लिए बार-बार अखिलेश सरकार की खिंचाई करते थे तो समझ में आता था, लेकिन अब शिवपाल का नाम लेकर सरकार की ऐसी तैसी हो जाने के जो संकेत दिए हैं, उसके सच में कुछ मायने हैं या अब नेताजी ने इस बहाने शिवपाल यादव पर भी अपना चरखा दांव चल दिया है, यह देखने वाली बात होगी. हो सकता है कि यादव परिवार में आपसी संतुलन ठीक करने के लिए अब कुछ नौकरशाह, कुछ घोषित प्रत्याशी, कुछ जिलाध्यक्ष और कुछ मंत्रियों पर शिकंजा कसने का दिखावा किया जाए.
-मनोज सामना की फेसबुक वाल से साभार .