अगर आपसे कोई कहे कि मुगल शासक बहादुर शाह जफर के परिवार की बहू आज झुग्गी बस्ती में रहती है और उनका परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया है तो शायद यह बात आपको हज्म ही न हो लेकिन यह हकीकत है। जी हां, जिन मुगल शासकों ने पूरे भारत पर राज किया, जिन्होंने देश को विशाल यादगार स्मारक और किले दिए हैं आज उन्हीं के परिवार के बहू झोपड़े में रहने को मजबूर है। यह बहू ताल्लुक रखती है मुगल साम्राज्य के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर के परिवार से। अब तो इनके बारे में जानने को आप भी इच्छुक होंगे। तो चलिए बताते हैं…
जिनकी बात हम कर रहे हैं वह बहादुर शाह जफर के परपोते की पत्नी हैं, जिनका नाम है ‘सुल्ताना बेगम’। आज की तारीख में वह कोलकाता के एक स्लम में रहती हैं। यह वाकयी ताज्जुब करने वाली बात है, जहां एक तरफ दुनिया उनके पूर्वजों की देन के दीदार करने भारत आते हैं आज उसी परिवार की बहू शाही अंदाज के रहन-सहन से हटकर स्लम में रह रही है।
सुल्ताना बहुत मुश्किल से घर के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाती हैं। नौबत ऐसी आ गई है कि उन्हें सरकार से पेंशन लेनी पड़ती है लेकिन यह उनके लिए पर्याप्त नहीं। सुल्ताना बेगम के पति स्वर्गीय प्रिंस मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त बहादुर को वर्ष 1980 तक महज 400 रुपये पेंशन मिलती थी। उनके इंतकाल के बाद यह पेंशन उन्हें मिलने लगी। वर्ष 2010 में इसे बढ़ाकर 6000 कर दिया गया। मंहगाई के इस जमाने में वह बड़ी कठिनाई से इन्हीं पैसों से घरखर्च चलाती है।सुल्ताना अपनी माली हालत से बेहद परेशान हो चुकी है। इसके लिए वह सरकार को कई बार खत भी लिख चुकी है।
मीडिया रिपोर्टों की मानें तो सुल्ताना को एकबार सरकार की ओर से 50 हजार रुपए और एक घर दिया गया था लेकिन कुछ लोगों ने उनसे वह भी छीन लिया।
इसके बाद सुल्ताना का माली हालत और भी बिगड़ती चली गई। सिर से छत छिनने के बाद में उन्हें सड़क पर रहने को मजबूर होना पड़ा। सुल्ताना ने कुछ पैसे जोड़े और फिर चाय की दुकान खोली।इसके कुछ दिन परिवार का खर्च चल सका, लेकिन किस्मत ने यहां भी उनका साथ नहीं दिया और वो दुकान भी बंद हो गई। सुल्ताना के स्व. पति बेदर बख्त उनसे कहा करते थे, ‘हम इज्जतदार राजशाही घराने से आते हैं, हम भीख नहीं मांग सकते।’ आज नसीब में स्लम के एक 2 रूम के चॉल में रहना है।
बता दें जब 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई थी तब क्रांतिकारियों ने बहादुर शाह जफर के साथ-साथ 57 के करीब अंग्रेज सिपाहियों को कैद कर लिया था, जिन्हें बहादुरशाह जफर के महल में बंदी बनाकर रखा गया था। इस लड़ाई में उनके परिवार के कुछ लोग मारे गए वहीं कुछ बर्मा और कुछ पाकिस्तान चले गए, लेकिन सुल्ताना और उनके पति यहीं रह गए। सुल्ताना सरकार से सिर्फ इतना चाहती है कि ताज महल, लाल किला और शालीमार गार्डन जैसी जगहों से जो पैसा सरकार कमाती है, उनमें से कम से कम उन्हें जीने भर का आसरा मिल जाए। अपनी इस हालत को लेकर सुल्ताना आज आजादी के बाद से लेकर अब तक की सभी सरकारों को दोषी ठहराती है। वे कहती हैं गद्दारी करने वाले राजघरानों के पास तो सबकुछ है पर असली स्वतंत्रता सेनानियों को कोई पूछने वाला नहीं है।
वो कहती हैं कि उनके पति स्वर्गीय प्रिंस मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त बहादुर के इंतकाल के बाद 1981 में पेरिस के एक परिवार ने उन्हें अपने वतन चलने को कहा था लेकिन उस वक्त उन्होंने हिंदुस्तान को चुना। सिर्फ इतनी ही नहीं उन्हें पाकिस्तान से भी बुलावा आया पर उन्होंने उसे भी ठुकरा दिया। अब उनकी ख्वाहिश है कि वे किसी तरह आखिरी मुगल सम्राट की मिट्टी रंगून से अपने वतन ला सकें। दिल्ली के महरौली स्थित जफर महल में आज भी बहादुरशाह की खाली कब्र मिट्टी का इंतजार कर रही है। लेकिन वह इसके लिए हाथ नहीं फैलाएंगी।