26 अगस्त 2020 को प्रारंभ हुआ महालक्ष्मी व्रत का 10 सितंबर को समापन दिवस है। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से हर वर्ष महाराष्ट्रियन परिवारों सहित सभी उत्तर भारतीयों में महालक्ष्मी उत्सव का आरंभ होता है और अश्विन कृष्ण अष्टमी को इस व्रत का समापन होता है।

कुछ खास
1. इस दौरान जो लोग 16 दिन का व्रत रखते हैं और आखिरी दिन उद्यापन करते हैं। जो लोग 16 दिन का व्रत नहीं रख पाते, वो केवल तीन दिन व्रत रखकर उद्यापन करते हैं।
2. खासकर इसमें पहले, 8वें और 16वें दिन ये व्रत रखने जाने का महत्व है।
3. इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता परंतु दूध, फल, मीठे का सेवन किया जा सकता है।
4. 16 दिनों तक व्रत को रखने से मां लक्ष्मी सभी मनोकामनाएं पूरी अवश्य करती हैं और जीवन में चली आ रही हर प्रकार की समस्याओं का अंत हो जाता है।
5. 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्घ्य देने से हर तरह का मनोरथ पूरा होता है।
6. इस दिन मिट्टी के हाथी लाकर उसकी पूजा करते हैं और असली हाथी की पूजा का भी प्रचलन है। इसीलिए इसे गजलक्ष्मी व्रत भी कहते हैं।
महालक्ष्मी व्रत समापन विधि :
यदि आपने 16 दिनों का महालक्ष्मी व्रत रखा है तो इस सामान्य विधि से भी व्रत का समापन कर सकते हैं।
1. सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर लक्ष्मी माता की स्थापित प्रतिमा की विधि पूर्वक पूजा करें।
2. मां की पूजा के लिए लाल रंग के फूल, अक्षत, धूप, अगरबत्ती, कमल का फूल, सुपारी, चंदन, दूर्वा, नारियल आदि का उपयोग करें।
3. सर्वप्रथम मां लक्ष्मी के चित्र या मूर्ति पर कमल का फूल चढ़ाएं और धूप दिखाते हुए उनसे धन धान्य बनाए रखने की आराधना करें।
4. अब प्रसाद हेतु खोये की बर्फी और किशमिश का भोग लगाएं।
5. शाम को इस व्रत का समापन करने से पूर्व एक बार पुन: माता की विधिवत पूजा और आरती करें। इसके बाद ही अन्न जल ग्रहण करें।
6. व्रत समाप्ति के दौरान मां के बीज मंत्रों का जाप जरूर करें।
जैसे- “ॐ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ
महालक्ष्मी नम:।।” या “ॐ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।”
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