महात्मा गांधी को जवाहर लाल नेहरू की विश्वसनीयता पर था संदेह…

महात्मा गांधी को जवाहर लाल नेहरू की विश्वसनीयता पर संदेह था। उनको डर था कि कांग्रेस का अध्यक्ष न बनाए जाने पर जवाहर लाल नेहरू विद्रोह कर सकते हैं और भारत की आजादी का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। …इसलिए वर्ष 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष चुनने के लिए 16 प्रदेश कांग्रेस की कमेटियों के अध्यक्षों में से 15 अध्यक्षों द्वारा नेहरू का समर्थन न करने के बाद भी नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए। आचार्य कृपलानी ही एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने नेहरू का समर्थन किया था। यह बातें भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने कहीं।

स्वामी चेम्सफोर्ड क्लब में रिटायर्ड मेजर जनरल डॉ. जीडी बख्शी द्वारा हिंदी में अनुवादित ‘बोस या गांधी किसने दिलाई आजादी’ पुस्तक का विमोचन कर रहे थे। पुस्तक का हिंदी में अनुवाद आशिता वी. दाधीच ने किया है।

इस मौके पर भाजपा नेता ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने उन्हें बताया था कि गांधी को शक था कि नेहरू अंग्रेजों के साथ मिले हुए हैं। अगर उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया तो विद्रोह हो सकता है। वर्ष 1947 के बाद गांधी को लगने लगा कि नेहरू उनकी बातें नहीं मान रहे हैं। तब महात्मा गांधी जी ने सरदार पटेल को बुलाकर कहा कि वह कांग्रेस को दो हिस्सों में विभाजित करेंगे। एक हिस्सा पटेल व दूसरा नेहरू के पास जाएगा।

समारोह में भारतीय जनता पार्टी से राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि गांधी जी जिंदा होते तो वह ऐसा करते। जीडी बख्शी ने गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में इस वर्ष आजाद हिंद फौज के पूर्व सैनिकों को न बुलाने पर भी नाराजगी जताई है। इंडिया गेट के पास सुभाष की प्रतिमा लगाने और उन्हें भारत रत्न देने की मांग की।

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