बाराबंकी/ गांव का नाम पाण्डवों की माता कुन्ती के नाम पर है। जब धृतराष्ट्र ने पाण्डु पुत्रों को अज्ञातवास दिया तो पांडवों ने अपनी माता कुन्ती के साथ यहां के वन में निवास किया था। इसी अवधि में ग्राम किन्तूर में कुंतेश्वर महादेव की स्थापना हुयी थी। भगवान शिव की पूजा करने के लिए माता कुंती ने स्वर्ग से पारिजात पुष्प लाये जाने की इच्छा जाहिर की। अपनी माता की इच्छानुसार अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लेकर यहां स्थापित कर दिया।
इस पेड़ की पौराणिक मान्यता
दूसरी पौराणिक मान्यता यह है कि एक बार श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी के साथ व्रतोद्यापन समारोह में रैवतक पर्वत पर आ गए। उसी समय नारद अपने हाथ में पारिजात का पुष्प लिए हुए आए। नारद ने इस पुष्प को श्रीकृष्ण को भेंट कर दिया। श्रीकृष्ण ने इस पुष्प को रुक्मिणी को दे दिया और रुक्मिणी ने इसे अपने बालों के जूड़े में लगा लिया इस पर नारद ने प्रशंसा करते हुए कहा कि फूल को जूड़े में लगाने पर रुक्मिणी अपनी सौतों से हजार गुना सुन्दर लगने लगी हैं। पास में खडी हुयी सत्यभामा की दासियों ने इसकी सूचना सत्यभामा को दे दी। श्री कृष्ण जब द्वारिका में सत्यभामा के महल में पहुंचे तो सत्यभामा ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए हठ किया। सत्यभामा को प्रसन्न करने के लिए स्वर्ग में स्थित पारिजात को लाने के लिए देवराज इंद्र पर आक्रमण कर पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर द्वारिका ले आये और वहां से अर्जुन ने इस पारिजात को किन्तूर में स्थापित कर दिया।
आमतौर पर पारिजात वृक्ष 10 फीट से 25 फीट तक ऊंचे होता है, पर किंटूर में स्तिथ पारिजात वृक्ष लगभग 45 फीट ऊंचा और 50 फीट मोटा है। इस पारिजात वृक्ष कि सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अपनी तरह का इकलौता पारिजात वृक्ष है, क्योकि इस पारिजात वृक्ष पर बीज नहीं लगते है तथा इस पारिजात वृक्ष कि कलम बोने से भी दूसरा वृक्ष तैयार नहीं होता है। पारिजात वृक्ष पर जून के आस पास बेहद खूबसूरत सफ़ेद रंग के फूल खिलते है। पारिजात के फूल केवल रात कि खिलते है और सुबह होते ही मुरझा जाते है। इन फूलों का लक्ष्मी पूजन में विशेष महत्तव है। पर एक बात ध्यान रहे कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल पूजा में काम लिए जाते है जो वृक्ष से टूट कर गिर जाते है, वृक्ष से फूल तोड़ने कि मनाही है।
मनोकामनाओ की पूर्ति करता है यह पेड़
ऐसी मान्यता है की यहा जो कुछ मांगो पूर्ण होता है दूर दूर से लोग यह आते है और अपनी मनोकामना मांगते है इसी लिए इस पेड़ को सर्व मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाला कल्पतरु, कल्प्दान या कल्प वृक्ष भी कहते है. कामना पूर्ति पारिजात को प्रथ्वी पर श्रीकृष्ण लेकर आये थे। कहते है यहा से कोई कभी खली हाथ वापस नहीं जाता है मतलब उसकी सारी इछाये पूर्ण हो जाती है।
पारिजात वृक्ष के औषधीय गुण
पारिजात को आयुर्वेद में हरसिंगार भी कहा जाता है। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है। इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलों के रस का सेवन किया जाए तो हृदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते हैं।