चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने जीवन के मूल्यों को लेकर कई नीतियों का बखान किया है. वो अपने नीति शास्त्र यानी चाणक्य नीति के 13वें अध्याय में लिखे एक श्लोक में कहते हैं कि इंसान अपनी एक आदत के कारण हमेशा परेशान और दुखी रहता है.
इस आदत के कारण उसके काम खराब हो जाते हैं. सफलता कोसो दूर चली जाती है. यही नहीं उसके सामने कई प्रकार की समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं. आइए जानते हैं उस आदत के बारे में…
अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्।
जनो दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात।।
चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से कहते हैं कि मन की चंचलता पर जिसका नियंत्रण रहता है वो सफलता को प्राप्त करता है. वो कहते हैं कि मनुष्य का चित्त स्थिर होना चाहिए. चित्त स्थिर न हो तो दूसरों के सुख में भी वो दुखी ही रहता है. ऐसे व्यक्ति को न तो लोगों के बीच में सुख मिलता है और न ही जंगल में.
चाणक्य के मुताबिक समाज में रहने पर उसे लोगों का साथ दुख देता है और जंगल में रहने पर उसका अकेलापन. वो किसी दूसरे व्यक्ति की खुशी को सहन नहीं कर पाता. इंसान को अपने चित्त यानी मन पर नियंत्रण रखना आना चाहिए.
अधमा धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्॥
चाणक्य महापुरुषों की धन की चर्चा करते हुए कहते हैं कि नीच लोगों के लिए धन यानी पैसा ही सबकुछ होता है. यही कारण है कि इसे प्राप्त करने के लिए वो सही और गलत रास्ते को देखे बगैर आगे बढ़ते हैं.
वहीं मध्यम दर्जे का व्यक्ति धन तो चाहता है लेकिन सम्मान की बली देकर नहीं. यानी उसे धन और सम्मान दोनों की जरूरत होती है. वहीं, महापुरुष लोग धन की चाहत नहीं रखते. उनके लिए मान-सम्मान ही सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. वही उनका धन होता है.