जनवरी में समीर खान नामक मुस्लिम व्यक्ति ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की। उसने कोर्ट में कहा कि उसकी शादी सितंबर में 23 वर्षीय महिला के साथ हुई थी। वह और उसकी पत्नी इंदौर में रह रहे थे जहां उसकी पत्नी एक बूटिक चलाती थी। समीर के अनुसार उसकी पत्नी के माता पिता को जब उनकी शादी के बारे में पता चला तो वह उसे अपने घर लेकर चले गए और अब उसे वापस नहीं लौटने दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मुस्लिम व्यक्ति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निपटाया जिसमें उसने कहा था कि उसकी हिंदू पत्नी को उसके माता पिता ने गैरकानूनी तरीके से नजरबंद किया हुआ है क्योंकि उन्हें हमारी शादी मंजूर नहीं है। समीर की पत्नी को जब जेके महेशवरी की अदालत में पेश किया गया तो उसने कहा कि वह समीर के पास जाने के लिए तैयार है यदि वह उसकी शर्तें मानता है कि वह दूसरी शादी नहीं करेगा और ना ही उसे उसका नाम बदलने को कहेगा।
याचिकाकर्ता के वकील कुलदीप पाठक ने कहा कि समीर के सारी शर्तों के मानने के बाद महिला उसके पास वापस आने के लिए मान गई थी। सरकारी वकील ने जज को सलाह देते हुए कहा कि वह महिला की दलील अपने चेंबर में सुनें क्योंकि वह कोई फैसला लेने की स्थिति में नहीं लग रही है और परेशान लग रही है।
कोर्ट की दोबारा हुई सुनवाई में महिला ने कहा कि वह अपने माता पिता के पास वापिस जाना चाहती है। महिला के माता पिता उस समय कोर्ट में मौजूद थे। महिला के माता पिता ने कोर्ट में कहा कि वह अपनी बेटी की देखभाल करेंगे। 26 फरवरी को कोर्ट का फैसला आया। खान द्वारा प्रस्तुत किए गए शादी के कागजों का जिक्र करते हुए जज ने कहा कि खान को कानून की शरण लेने की पूरी आजादी है। साथ ही जज ने दलील को निपटाते हुए कहा कि महिला को गैरकानूनी तरीके से नजरबंद नहीं किया गया है।