मगही पान को मिली जीआई टैगिंग, अब किसान मगही पान का निर्यात कर सकेंगे

बिहार का मगध इलाका अपने आप में कई ऐतिहासिक धरोहर संजोए हुए है. ऐतिहासिक घटनाओं से इतर अगर यहां की खेती की बात करें तो दिमाग में सबसे पहला नाम मगही पान का आता है. मगही शब्द मगह से बना है जो लोग स्थानीय बोली के रूप में मगध को बोलते हैं. मगध से बना मगह और इसी से जुड़ा है मगही पान. मगही पान पूरे देश में प्रसिद्ध है जिसकी खेती बिहार के मगध इलाके में होती है.

मगध के चार जिले औरंगाबाद, नवादा, गया और नालंदा में मगही पान की बड़े स्तर पर खेती होती है. मगध के इन चार जिलों में तकरीबन 5 हजार किसान परिवार मगही पान की खेती करते हैं. यह खेती मुश्किल है और मेहनत की बेहद जरूरत होती है. गुटखे का बाजार लगातार बढ़ने से पान का दायरा सिमटता जा रहा है जिसका असर किसानों पर देखा जा रहा है. पानी की खेती परिवार से विरासत में मिली है, इसलिए किसान जल्दी इसे छोड़ना नहीं चाहते और अगर लगे रहते हैं तो अब जीना मुहाल है. बची-खुची मुश्किल तब और बढ़ जाती है जब ठंड में पान के पत्तों को पाला मार जाए. ऐसे में किसानों को आस होती है सरकारी सहायता की जिसकी उम्मीद अब बढ़ती दिख रही है.

मगही पान को जीआई (जियोग्राफिक इंडीकेशन GI) टैगिंग मिल गई है और इससे उम्मीद है कि गुरबती और बदहाली में जीने वाले किसानों के दिन अब बहुरेंगे. जीआई टैगिंग का फायदा यह होगा कि निर्यात के उद्देश्य से अब महगी पान मगध के उन्हीं जिलों में होगी जहां पहले से होती रही है. मगध के किसान ही सिर्फ मगही पान की खेती करेंगे और बिजनेस के उद्देश्य से कहीं और भेजेंगे. अब वे ही किसान मगही पान का निर्यात कर सकेंगे. मगध के अलाला अन्य जगहों के किसान मगही पान की खेती खुद के इस्तेमाल के लिए कर सकते हैं लेकिन बिजनेस या निर्यात के उद्देश्य से नहीं. जीआई टैगिंग मिलने से उम्मीद है कि किसानों की आय बढ़ेगी और पान की खेती बड़े स्तर पर करके किसान अपनी दशा सुधार पाएंगे.

जीआई यानी कि जियोग्राफिकल इंडीकेशन का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की खास विशेषता और प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है. जीआई टैगिंग का बड़ा फायदा एक्सपोर्ट को लेकर मिलता है. यह टैगिंग मिलने से स्थानीय किसानों के उत्पाद वैश्विक स्तर पर पहचान पाते हैं और उससे देश-विदेश के इलाकों में पहुंच बढ़ती है. इससे किसानों की आमदनी में इजाफा होता है.

बिहार में मगही पान के अलावा जर्दालू आम और कतरनी चावल को भी जीआई टैगिंग मिली है. जर्दालु आम हलके पीले रंग का बेहद मीठा आम होता है. कतरनी चावल देखने में लंबा और बनने पर काफी महीन और मुलायम होता है. पकाने के बाद इस चावल से खूशबू भी आती है. मगही पान स्वाद में मीठा और मुंह में जल्द घुलने वाला होता है. नवादा जिले के किसान अब भी परंपरागत तरीके से मगही पान की खेती करते हैं. जीआई टैगिंग मिलने से खेती में तकनीकी इस्तेमाल बढ़ने और अच्छा बाजार मिलने की संभावना जगी है.

नवादा जिले की मगही पान उत्पादक समिति के अंतर्गत जीआई टैगिंग प्रदान की गई है. जीआई टैगिंग चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री को ओर से दी जाती है. जिन उत्पादों में कुछ खास क्वालिटी होती है, उन्हें ही यह टैगिंग दी जाती है. स्थान विशेष की खास विशेषताओं के साथ जिन उत्पादों को तैयार किया जाता है, उन्हें यह टैगिंग प्रदान की जाती है. इसमें ओरिजिन यानी कि उत्पाद जहां पैदा होता है, उसका पूरा खयाल रखा जाता है. कश्मीरी पश्मीना, दार्जिलिंग चाय और कांचीपुरम सिल्क को भी जीआई टैगिंग मिली है.

पानी की खेती 15 जनवरी के बाद शुरू होती है. इसके लिए जमीन की गहरी खुदाई करते हैं फिर उसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ देते हैं. बाद में दो उथली जुताई की जाती है और बरेजा का निर्माण किया जाता है. यह काम 15-20 फरवरी तक पूरी की जाती है. तैयार बरेजा में फरवरी के अंतिम हफ्ते से 20 मार्च तक पान के बेलों को रोप दिया जाता है. पान के हर नोड पर जड़ें होती हैं जो मिट्टी पाते ही नए पौधे का निर्माण करती हैं. अच्छे पान की खेती के लिए सही नमी की जरूरत होती है. पान के बेल की वृद्धि सबसे अधिक बारिश के सीजन में होती है. अच्छी नमी होने से पत्तियों में पोषक तत्वों का संचार अच्छा होता है और तना, पत्तियों में वृद्धि अच्छी होती है. इससे उत्पादन अच्छा होता है.

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