भोलेनाथ की आरती में कई चीज़ों का उपयोग होता है लेकिन उसमे भस्म को सबसे ख़ास माना जाता है. ऐसे में अगर आपको नहीं पता कि आखिर भगवान भोलेनाथ को विचित्र सामग्री ही प्रिय क्यों है और वह भस्म को इतना क्यों पसंद करते हैं तो आइए इस बारे में हम आपको बताते हैं. आज हम आपको एक पौराणिक कथा बताते हैं जिसमें छुपा है इसका राज.

पौराणिक कथा – कहते हैं जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो गई और फिर भी शिव का संताप जारी रहा. तब श्री हरि ने सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर दिया. शिव ने विरह की अग्नि में भस्म को ही सती की अंतिम निशानी के तौर पर तन पर लगा लिया. पहले भगवान श्री हरि ने देवी सती के शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया था. जहां-जहां उनके अंग गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई. लेकिन पुराणों में भस्म का विवरण भी मिलता है. भगवान शिव के तन पर भस्म रमाने का एक रहस्य यह भी है कि राख विरक्ति का प्रतीक है. भगवान शिव चूंकि बहुत ही लौकिक देव लगते हैं. कथाओं के माध्यम से उनका रहन-सहन एक आम सन्यासी सा लगता है. एक ऐसे ऋषि सा जो गृहस्थी का पालन करते हुए मोह माया से विरक्त रहते हैं और संदेश देते हैं कि अंत काल सब कुछ राख हो जाना है.एक रहस्य यह भी हो सकता है चूंकि भगवान शिव को विनाशक भी माना जाता है. ब्रह्मा जहां सृष्टि की निर्माण करते हैं तो विष्णु पालन-पोषण लेकिन जब सृष्टि में नकारात्मकता बढ़ जाती है तो भगवान शिव विध्वंस कर डालते हैं.
विध्वंस यानि की समाप्ति और भस्म इसी अंत इसी विध्वंस की प्रतीक भी है. शिव हमेशा याद दिलाते रहते हैं कि पाप के रास्ते पर चलना छोड़ दें अन्यथा अंत में सब राख ही होगा. शिव का शरीर पर भस्म लपेटने का दार्शनिक अर्थ यही है कि यह शरीर जिस पर हम घमंड करते हैं, जिसकी सुविधा और रक्षा के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं एक दिन इसी इस भस्म के समान हो जाएगा. शरीर क्षणभंगुर है और आत्मा अनंत.
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