दुनिया में पाप और पुण्य का दौर चलता रहता है. लोग पाप को कम करने के लिए पुण्य का काम भी किया करते हैं. पुराने जमाने में ईसाई धर्म में 7 पापों को घोर पाप की सूची में रखा था ताकि मनुष्य ये पाप करे तो हमेशा के लिए दोषी ठहराया जा सके. इन सात महापापों को अंग्रेजी में सेवेन डेडली सिंस (Seven deadly sins) या कैपिटल वाइसेज (Capital vices) या कारडिनल सिंस (Cardinal sins) भी कहा जाता है. आइए जानते हैं इन्हें…
लस्ट (Lust)
लस्ट यानी लालसा, कामुकता, कामवासना. ये मनुष्य को दंडनीय अपराध की ओर ले जाते हैं और इनसे समाज में कई प्रकार की बुराईयां फैलती हैं. इस पाप में गैर महिलाओं से संबंध स्थापित करना शामिल है.
ग्लूटनी (Gluttony)
ग्लूटनी को भी सात महापापों में रखा गया है. दुनिया भर में तेजी से फैलने वाले मोटापे की हर जमाने में निंदा हुई है और इसका मजाक उड़ाया गया है. ठूंस कर खाने को महापाप में इसलिए रखा गया है कि एक तो इसमें अधिक खाने की लालसा है और दूसरा यह जरूरतमंदों के खाने में हस्तक्षेप करने के समान है.
ग्रीड (Greed)
लालच, लोभ भी लस्ट और ग्लूटनी की तरह है और इसमें अत्यधिक प्रलोभन होता है. चर्च ने इसे सात महापाप की सूची में अलग से इसलिए रखा है क्योंकि इसमें धन-दौलत का लालच शामिल है.
स्लौथ (Sloth)
स्लौथ का मतलब आलस्य, सुस्ती और काहिली से है. पहले स्लौथ का अर्थ होता था उदास रहना, खुशी न मनाना. इसे महापाप में इसलिए रखा गया था कि इसका मतलब था खुदा की दी हुई चीज से परहेज करना. इस अर्थ का पर्याय आज melancholy, apathy, depression, और joylessness होगा. बाद में इसे इसलिए पाप में शामिल रखा गया क्योंकि इसकी वजह से आदमी अपनी योग्यता और क्षमता का प्रयोग नहीं करता है.
रैथ (Wrath)
रैथ का मतलब गुस्से, क्रोध और आक्रोश से है. इसे नफरत और गुस्से का मिला जुला रूप कहा जा सकता है. जिसमें आकर कोई कुछ भी कर जाता है. ये सात महापाप में अकेला ऐसा पाप है जिसमें आपका अपना स्वार्थ शामिल नहीं होता.
एनवी (Envy)
ईर्ष्या करना भी पाप माना गया है. यह ग्रीड से इस अर्थ में अलग है कि ग्रीड में धन-दौलत ही शामिल है जबकि यह उसका व्यापक रूप है. यह महापाप इसलिए है कि क्योंकि लोग कोई गुण किसी में देखकर उसे अपने में चाहते हैं और दूसरे की अच्छी चीज को सहन नहीं कर पाते हैं.
प्राइड (Pride)
घमंड, अहंकार, अभिमान को सातों महापाप में सबसे बुरा पाप समझा जाता है. किसी भी धर्म में इसकी कठोर निंदा और भर्त्सना की गई है. इसे सारे पाप की जड़ समझा जाता है क्योंकि सारे पाप इसी के पेट से निकलते हैं. इसमें खुद को सबसे महान समझना और खुद से अत्यधिक प्रेम शामिल है.