खुद को बहुजन समाज पार्टी (BSP) का विकल्प बनाने की कोशिशों में जुटी भीम आर्मी विधानसभा से पूर्व पंचायत चुनावों में भी अपनी ताकत दिखाएगी। बिना गठबंधन अपने दम पर चुनाव में उतरेगी ताकि गांव गांव में कार्यकर्ताओं को मजबूती दी जा सके।
सधी चाल से बहुजन समाज पार्टी के गिरते ग्राफ का लाभ लेना चाह रहे भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर सीधे मायावती का नाम लेकर उन पर निशाना साधने से बचते हैं।
यही वजह है कि बसपा के असंतुष्ट नेताओं की पहली पसंद भीम आर्मी बनती जा रही है। लखनऊ के दो दिनी प्रवास के दौरान चंद्रशेखर से मिलने वाले प्रमुख नेताओं में बसपा के पूर्व एमएलसी सुनील चितौड़ समेत तीन दर्जन से अधिक कद्दावर दलित और पिछड़े वर्ग के नेता शामिल थे।
बाबा साहेब आंबेडकर व कांशीराम के मिशन को अंजाम तक पहुंचाने का नारा देकर दलितों में जड़ें मजबूत कर रही भीम आर्मी कांशीराम जयंती (15 मार्च) पर राजनीतिक विंग के गठन की घोषणा करेगी।
इसी दिन बसपा भी हर जिले में कांशीराम जयंती मनाएगी। यह पहला मौका होगा जब भीम आर्मी और बसपा के बीच भीड़ जुटाने को शक्ति प्रदर्शन जैसे हालात बनेंगे।
भीम आर्मी दलित मुस्लिम गठजोड़ के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटों पर नजर लगाए है। भीम आर्मी के सक्रिय कार्यकर्ता रविंद्र भाटी का कहना है कि बसपा में कैडर की उपेक्षा से समर्थकों में मायूसी है।
इसी कारण असंतुष्टों को चंद्रशेखर के नेतृत्व में उम्मीद दिख रही है। भीम आर्मी ने जिस तरह अल्पसंख्यकों के मुद्दों को लेकर संघर्ष किया है, उससे मुस्लिमों में भरोसा बढ़ा है।
पिछड़े वर्ग में एक बड़ा वर्ग समर्थन में खड़ा है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी मुखिया ओमप्रकाश राजभर के अलावा पिछड़ा वर्ग समाज के आधा दर्जन संगठन साथ जुड़ने की इच्छा जता चुके हैं।
वोटों के समीकरण को देखते हुए भीम आर्मी पश्चिमी उप्र से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करेगी। पश्चिमी जिलों में मजबूत दलित मुस्लिम समीकरण देखते हुए माना जा रहा है कि भीम आर्मी की रैली और राजनीतिक पार्टी की घोषणा भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होगी।