भारत हर साल 1200 टन हींग 600 करोड़ रुपये खर्च कर आयात करता है

तेज गंध और छोटे कंकड़ की तरह दिखने वाले हींग की बहुत थोड़ी सी मात्रा भी खाने का स्वाद बदल देती है। भारत में रसोई घरों में रहने वाली यह एक जरूरी मसाला है। हींग का इस्तेमाल पूरे भारत में बड़े पैमाने पर होता है। हालांकि कई लोग हींग की गंध को पसंद नहीं करते हैं, लेकिन यह पाचक की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है। यह अमूमन सूरज की रोशनी से दूर एयर-टाइट बॉक्स में रखा जाता है। अचानक हींग की चर्चा इसलिए शुरू हो गई, क्योंकि हिमाचल प्रदेश में हींग की खेती शुरू हुई है। काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) का कहना है कि यह पहली बार है जब भारत में हींग की खेती हो रही है। 

सीएसआईआर ने पालमपुर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नॉलॉजी (आईएचबीटी) ने सोमवार से खेती शुरू होने की घोषणा की है। हिमाचल के लाहौल स्पीति क्षेत्र में हींग की खेती शुरू की गई है। सीएसआईआर के डायरेक्टर शेखर मांदे का दावा है कि भारत में पहली बार हींग की खेती की जा रही है। क्या वाकई में भारत में हींग की खेती करना बहुत मुश्किल काम है? अगर भारत में हींग की खेती नहीं होती तो ये फिर कहां से आता है और इतने बड़े पैमाने पर भारत में क्यों इस्तेमाल किया जाता है। 

भारत हींग नहीं उपजाता लेकिन भारत में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल जरूर होता है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में पैदा होने वाले हींग का 40 फीसदी भारत में इस्तेमाल होता है। भारत में इस्तेमाल होने वाला हींग ईरान, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों से आता है। कुछ व्यापारी इसे कजाखस्तान से भी मंगवाते हैं। अफगानिस्तान से आने वाले हींग की मांग सबसे ज्यादा है। 

सीएसआईआर के मुताबिक, भारत हर साल 1,200 टन हींग इन देशों से 600 करोड़ रुपये खर्च कर आयात करता है। इसलिए अगर भारत में हींग उपजाने में कामयाबी मिलती है तो जितनी मात्रा में हींग आयात होता है, उसमें कमी आएगी और इसकी कीमत भी कम होगी। हालांकि हींग का उत्पादन इतना आसान नहीं। 

हींग का पौधा गाजर और मूली के पौधों की श्रेणी में आता है। ठंडे और शुष्क वातावरण में इसका उत्पादन सबसे अच्छा होता है। पूरी दुनिया में हींग की करीब 130 किस्में हैं। इनमें से कुछ किस्में पंजाब, कश्मीर, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में उपजाई जाती है, लेकिन इसकी मुख्य किस्म फेरुला एसाफोइटीडा भारत में नहीं पाई जाती है। सीएसआईआर जिस बीज की मदद से हींग की खेती कर रहा है वो ईरान से मंगवाया गया है। दिल्ली स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (आईसीएआर-एनबीपीजीआर) ने ईरान से हींग की नौ किस्में मंगवाई है। आईसीएआर-एनबीपीजीआर ने यह साफ किया है कि तीस साल में पहली बार हींग के इस बीज को भारत लाया गया है। 

लेकिन सिर्फ पौधे उगाने का कतई मतलब नहीं है कि ये हींग पैदा करेगा। हालांकि बीज बोने के बाद चार से पांच साल लगेंगे वास्तविक उपज पाने में। एक पौधे से करीब आधा किलो हींग निकलता है और इसमें करीब चार साल लगते हैं। इसलिए हींग की कीमत इतनी ज्यादा होती है। हींग की कीमत इस पर भी निर्भर करती है कि इसे कैसे पैदा किया जा रहा है। भारत में शुद्ध हींग की कीमत अभी करीब 35 से 40 हजार रुपये है। इसलिए सीएसआईआर के वैज्ञानिकों को लगता है कि अगर हींग की खेती कामयाब हुई तो इससे किसानों को जोरदार फायदा होगा। 

हींग फेरुला एसाफोइटीडा के जड़ से निकाले गए रस से तैयार किया जाता है, लेकिन यह इतना आसान नहीं। एक बार जब जड़ों से रस निकाल लिया जाता है तब हींग बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। स्पाइसेस बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक दो तरह के हींग होते हैं- काबुली सफेद और हींग लाल। सफेद हींग पानी में घुल जाता है जबकि लाल या काला हींग तेल में घुलता है। 

कच्चे हींग की बहुत तीखी गंध होती है इसलिए उसे खाने लायक नहीं माना जाता। खाने लायक गोंद और स्टार्च को मिलाकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तैयार किया जाता है। व्यापारियों का कहना है कि हींग की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें क्या मिलाया गया है। हींग पाउडर भी मिलता है। दक्षिण भारत में हींग को पकाया जाता है और इन पके हुए हींग के पाउडर का इस्तेमाल मसालों में किया जाता है। 

कुछ लोगों का कहना है कि हींग मुगल काल के दौरान भारत आया था, क्योंकि ये ईरान और अफगानिस्तान में होता है, लेकिन दस्तावेजों से यह पता चलता है कि हींग मुगलों के आने से पहले से ही भारत में इस्तेमाल होता रहा है। संस्कृत में इसे हींगू के नाम से जाना जाता है। इंडियन स्टडी सेंटर के मैनेजिंग ट्रस्टी मुग्धा कार्निक बताती हैं, ‘इस बात की संभावना है कि कुछ जनजातियां ईरान से इसे भारत लेकर आई हो। इसे लेकर शोध चल रहा है। हींग इन जनजातियों के खान-पान की आदत से भारत में आई हो ऐसा हो सकता है।’ वो कहती हैं, ‘शुरू में हींग ईरान और अफगानिस्तान से आने वाले व्यापारियों से भारत के लोगों ने मंगवाया होगा और इसी तरह से यह दक्षिण भारत में भी इस्तेमाल में आया होगा।’ 

मुग्धा कार्निक बताती हैं कि आयुर्वेद में हींग को लेकर कई उल्लेख मिलते हैं। अष्टांगहृदय में वाग्भट्ट लिखते हैं, ‘हिंगु वातकफानाह शूलघ्नं पित्त कोपनम्। कटुपाकरसं रुच्यं दीपनं पाचनं लघु।।’ इसका मतलब यह हुआ कि हींग शरीर में वात और कफ को ठीक करता है, लेकिन यह शरीर में पित्त के स्तर को बढ़ाता है। यह गर्म होता है और भूख को बढ़ाता है। यह स्वाद बढ़ाने वाला है। अगर किसी को स्वाद नहीं मिल रहा है तो उसे पानी में मिलाकर हींग दें।’ 

खारगार के वाईएमटी आयुर्वेद कॉलेज में डॉक्टर महेश कार्वे एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वे कहते हैं, ‘आयुर्वेद में सबसे पुरानी किताब चरक संहिता है। इसमें भी हींग का जिक्र किया गया है, इसलिए निश्चित तौर पर हींग का इस्तेमाल यहां कई ईसा पूर्व हो रहा था।’  

वे आयुर्वेद के हिसाब से हींग के महत्व को रेखांकित करते हैं। वे बताते हैं, ‘हींग एक पाचक है, ये पाचन में सहायक है। इसके इस्तेमाल से गैस की समस्या कम होती है। चूंकि भारतीय खाने में स्टार्च और फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए हींग ज्यादा उपयोगी साबित होता है। अगर आपको पाचन से संबंधित समस्याएं हैं तो हिंगास्तका चूर्ण लीजिए जिसमें मुख्य तौर पर हींग होता है। हींग के लेप का इस्तेमाल पेट दर्द ठीक करने में भी होता है। बहुत सारी दवाइयों में हींग का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि सिर्फ हींग का इस्तेमाल किसी दवाई में नहीं किया जाता है। आयुर्वेद के मुताबिक इसे हमेशा इस्तेमाल से पहले घी में पकाने की जरूरत होती है। अगर कच्चे हींग का इस्तेमाल किया जाए तो आपको उल्टी हो जाएगी।’

दिल्ली का खारी बावली एशिया में मसाले का सबसे बड़ा बाजार है। पिछले साल मैं इस बाजार में गई थी। उस बाजार की एक गली में सिर्फ हींग की खुशबू फैली हुई थी। इस बाजार में असली हींग खोजना एक अनुभव जैसा था। जब हमने हींग की ढेरी देखी तो अचरज में पड़ गए कि भारत में कितने बड़े पैमाने पर हींग का इस्तेमाल होता है। भारत में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हींग का इस्तेमाल अपने खाने में नहीं करते हैं, लेकिन कई लोगों के खाने का यह एक अभिन्न हिस्सा है। प्याज और लहसून वाले खानों में हींग का इस्तेमाल अमूमन किया जाता है।

कुछ लोग हींग का इस्तेमाल मांसाहारी खानों में करते हैं। कई सारे लोग कभी न कभी यहां हींग वाला दूध जरूर पीते हैं। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और अरब देशों में भी हींग का इस्तेमाल खाने और दवाई के रूप में होता है, लेकिन कई सारे लोगों को हींग की तेज गंध बिल्कुल अच्छी नहीं लगती है। 

इसलिए कुछ लोग हींग को ‘डेविल्स डंग’ कहते हैं। हालांकि खाने के साथ मिलाने पर इसकी गंध थोड़ी कम हो जाती है। केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में बनने वाले सांबर में हींग का इस्तेमाल जरूर किया जाता है। इसके अलावा गुजरात की कढ़ी, महाराष्ट्र के वरान और बैंगन की सब्जी में भी हींग का इस्तेमाल अनिवार्य तौर पर किया जाता है। अगली बार जब आप हींग का इस्तेमाल करेंगे तो आपको हींग के इतिहास और भूगोल की याद जरूर आएगी। 

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