भक्तों का उद्धार करने वाले देवता नृसिंह भगवान श्रीहरी के पांचवे अवतार हैं। भगवान नृसिंह को उग्र और शक्तिशाली देवता माना जाता है। इनकी उपासना से भय का नाश होता है और कष्टों से मुक्ति के साथ आकस्मिक दुर्घटनाओं से रक्षा होती है।
भगवान नृसिंह की आराधना से मुकदमों में विजय मिलती है और शत्रुओं का नाश होता है। नृसिह भगवान की उपासना से मानव को एक रक्षा कवच मिलता है, जिससे तंत्र-मंत्र से लेकर सभी तरह की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
नृसिंह जयंती को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। घर को स्वच्छ करें और पूजास्थल को गंगाजल से या किसी पवित्र नदी के जल से पवित्र करें।
इस दिन व्रत का संकल्प लेते हुए दोपहर के समय नदी के तट पर तिल, मिट्टी और आंवले के चूर्ण को शरीर पर मलकर चार बार स्नान करें और इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करें। घर आकर सभी विसंगतियों का त्याग करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए उपवास करें।
पूजा स्थल पर अष्ट दल कमल का निर्माण करते हुए उसके ऊपर तांबे का जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर चावलों से भरा हुआ बर्तन रखें और उसमें स्वर्ण से निर्मित लक्ष्मी प्रतिमा या सामान्य लक्ष्मी प्रतिमा के साथ भगवान नृसिंह मूर्ति की स्थापना करें। दोनों प्रतिमाओं का पंचामृत से स्नान करवाकर रखें। घी का दीपक और धूपबत्ती जलाएं। मिठाई और लाल फल का भोग लगाएं।
भगवान नृसिंह के मंत्रों का जाप करें। इनके मंत्रों का जाप मध्य रात्रि में करना उचित होगा। इस दिन व्रत रखें और निराहार या फिर एक समय फलाहार करें।
अगले दिन जरूरतमंदों को अन्न वस्त्र आदि का दान कर व्रत का पाारण करें। मान्यता है कि जो व्यक्ति भगवान नृसिंह की पूजा विधि-विधान के साथ करता है उसके कष्टों का नाश होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।