वैसे तो जब शिवपुत्र की बात आती है तो हमारे ध्यान में कार्तिकेय और गणेश ही आते हैं। वैसे तो भगवान शिव के किसी भी पुत्र ने माता पार्वती के गर्भ से जन्म नहीं लिया है किन्तु फिर भी कार्तिकेय और गणेश को शिव-पार्वती का ही पुत्र माना जाता है और इनकी प्रसिद्धि सबसे अधिक है। किन्तु इसके अतिरिक्त भी चार व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हे शिवपुत्र होने का गौरव प्राप्त है। हालाँकि ये इतने प्रसिद्ध नहीं हैं और पुराणों में भी इनके शिवपुत्र होने के विषय में अधिक वर्णन नहीं किया गया है किन्तु इन्हे भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र ही माना जाता है। तो आइये उनके बारे में कुछ जानते हैं:
- कार्तिकेय: इन्हे ज्येष्ठ शिवपुत्र माना जाता है। देवी सती की मृत्यु के पश्चात शिव बैरागी हो गए। तब देवी पार्वती ने उन्हें पति रूप में पाने के लिए तप शुरू किया। शिव विवाह नहीं करना चाहते थे किन्तु तारकासुर नामक राक्षस ने ब्रह्मदेव से ये वरदान प्राप्त किया कि उसका वध केवल शिवपुत्र के हांथों ही हो। इसीलिए कामदेव ने महादेव को देवी पार्वती की ओर आकर्षित करने के लिए उनपर कामबाण चलाया और उनकी क्रोधाग्नि में भस्म हो गए। अंततः विवाह तो हुआ किन्तु शिवजी के तेज को माता पार्वती अपने गर्भ में धारण नहीं कर सकी और उसे समुद्र में डाल दिया। वहां छः कृतिकाओं ने उस वीर्य को छः भागों में बाँट लिया जिससे एक पुत्र की उत्पत्ति हुई जो छः मुख वाला था। कृतिकाओं द्वारा पाले जाने के कारण उनका नाम कार्तिकेय पड़ा। अंततः वे कैलाश अपने माता पिता के पास लौटे और देवसेना के सेनापति के रूप में तारकासुर का वध किया। पूरे भारत, विशेषकर दक्षिण भारत में उनकी बड़ी मान्यता है जहाँ उन्हें मुरुगण और स्कन्द के नाम से भी जानते हैं।
- गणेश: गणेशजी की उत्पत्ति देवी पार्वती के शरीर के मैल से हुई थी। एक बात स्नान करते हुए उनके मन में एक पुत्र की कामना हुई और उन्होंने अपने शरीर पर लगे उबटन से एक बालक की मूर्ति बनायीं और उसे जीवित किया। उन्होंने उसे द्वार की रक्षा करने का आदेश दिया और स्वयं स्नान करने चली गयी। दैववश उधर महादेव आ निकले और उन्होंने कक्ष में प्रवेश करने का प्रयास किया तो गणेश ने उन्हें रोक दिया। शिवगण सारे मिलकर भी उसे परास्त नहीं कर सके। अंततः क्रोध में आकर महादेव ने अपने त्रिशूल से उस बालक का शीश काट दिया। जब माँ पार्वती बाहर आयी तो अपने पुत्र को मृत देख कर विलाप करने लगी। तब महादेव ने उसके कटे शीश पर हांथी का सर लगा कर उसे जीवित किया और उसे सभी गानों का प्रधान बनाया। तभी से वे गणपति कहलाये।
- सुकेश: ब्रह्माजी से हेति-प्रहेति नामक दो राक्षसों की उत्पत्ति हुई। हेति का पुत्र विद्युत्केश हुआ जिसका विवाह सालकण्टका नामक राक्षसी से हुआ। उससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई किन्तु दोनों कामक्रीड़ा में इतने व्यस्त थे कि अपने पुत्र से उनके सुख में व्यवधान आने के कारण उन्होंने उसे त्याग दिया। उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती वहाँ से गुजरे तो एक रोते हुए बालक को देख कर माता का ह्रदय द्रवित हो गया। उन्होंने उसे अपना पुत्र माना और सुकेश नाम दिया। प्रसन्न होकर महादेव ने उसे अमरता का वरदान भी दिया और उससे आगे राक्षस वंश चला।
- जलंधर: एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेक दिया जिससे जलंधर की उत्पत्ति हुई। उसे मालूम नहीं था कि वो शिवपुत्र है। उसका विवाह वृन्दा से हुआ जो महान सती थी। उसे वरदान प्राप्त था कि जब तक उसका सतीत्व अखंड रहेगा, उसके पति का कोई वध नहीं कर पायेगा। जलंधर ने एक बार देवी पार्वती को देखा और मुग्ध हो गया। उसे पता नहीं था कि वो उसकी माता है। उसने उसे पाने के लिए कैलाश पर चढ़ाई की जहाँ उसका युद्ध महादेव से हुआ। वरदान के कारण शिव उसका वध नहीं कर रहे थे और तब भगवान विष्णु जलंधर के वेश में वृन्दा के पास पहुँचे और उसके साथ रमण किया जिससे उसका सतीत्व टूट गया और तब महारुद्र ने जलंधर का वध कर दिया। वृन्दा को जब सत्य पता चला तो उसने नारायण को पत्थर हो जाने का श्राप दिया और स्वयं सती हो गयी। नारायण का पाषाण रूप शालिग्राम कहलाया और वृन्दा की राख से तुलसी की उत्पत्ति हुई। इसी से शालिग्राम के साथ तुलसी चढ़ाना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
- अयप्पा: एक बार महादेव ने भगवान विष्णु से उनके मोहिनी रूप को देखने का अनुरोध किया। जब श्रीहरि मोहिनी रूप में आये तो उनके रूप को देख कर शिव का वीर्यपात हो गया। उससे एक पुत्र “सस्तव” की उत्पति हुई जिसे अयप्पा कहा जाता है। दक्षिण भारत में उनके बड़े मात्रा में अनुयायी हैं और केरल के शबरीमला में स्वामी अयप्पा का विश्वप्रसिद्ध मंदिर है।
- भूमा: एक बार तपस्या करते समय भगवान शिव के पसीने की कुछ बूंदें भूमि पर गिरी जिससे एक रक्तवर्णीय बालक का जन्म हुआ जिसकी चार भुजाएं थी। उसका पालन पोषण धरती ने किया और भूमि से उत्पन्न होने के कारण उसे भूमा नाम से जाना गया और पृथ्वी का पुत्र माना गया। जब शिव समाधि से उठे तो उसे मंगल नाम दिया। मंगल ने काशी में भगवान शिव की घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने भूमा को मंगल ग्रह प्रदान किया।
इनके अतिरिक्त दैत्यराज बलि के पुत्र बाणासुर को भी शिव ने अपना पुत्र माना और उसके राज्य की रक्षा का वचन दिया। इसी कारण अश्वमेघ यज्ञ के समय श्रीराम को भगवान शंकर से युद्ध करना पड़ा। इसके बारे में आप यहाँ विस्तार से पढ़ सकते हैं। शिव-पार्वती की एक कन्या “अशोकसुन्दरी” भी थी जिसका विवाह नहुष से हुआ और उनके पुत्र ययाति से ही समस्त राजवंश चले।